ताख पर सिद्धांत

ताख पर सिद्धांत

आस में पन्ने बदलता है कलेंडर
पर छला जाता रहा प्रस्ताव से

ताख पर सिद्धांत
धन की चाह भारी
हो गया है आज
आँगन भी जुआरी

रोज़ ही गँदला रहा है आँख का जल
स्वार्थ-ईर्ष्या के हुए ठहराव से

ढल रहा जो वक्त
उसकी चाल का स्वर
कह रहा है आगमन का
वक्त बदतर

मगर नज़रों में न सम्यक भाव जागा
एक चिंता सिर्फ़ अपने घाव से

जी रहा जो वृहनला का
रूप धरकर
यदि जगे उस पार्थ के
गांडीव का स्वर

तो सुरक्षित हो सकेगा देश अपना
स्वयं पर ही हो रहे पथराव से।


Image : Head of An Old Man
Image Source : WikiArt
Artist : Peter Paul Rubens
Image in Public Domain

गरिमा सक्सेना द्वारा भी