मुक्ति

मुक्ति

एक घर में अर्थी की तैयारी चल रही थी। वहाँ नब्बे वर्षीय एक बुजुर्ग का आधी रात को निधन हो गया था। वह बुजुर्ग अपने एकमात्र बेटे और बहू के पास रहता था। करीब एक महीने से वृद्ध की अवस्था दयनीय हो चुकी थी। कहीं भी बाहर निकल जाता, कभी भी नहाने चला जाता, यहाँ तक कि पेशाब इत्यादि पर भी उसका कंट्रोल नहीं रह गया था। कभी भी उसका कपड़ा गंदा हो जाता और उसकी बदबू से सभी लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते। एक तरह से उस वृद्ध की शारीरिक और मानसिक दोनों अवस्था खराब हो चुकी थी।

ऐसी स्थिति में उसकी सेवा करना कोई भी नहीं चाह रहा था। एक कमरे में वह पड़ा रहता। करीब दो दिन पहले की बात है, सभी लोग उसे घर में बंद करके एक पार्टी में चले गए थे। पार्टी से लौटे तो देखा कि कमरे में ही वृद्ध ने शौच-पेशाब करके गंदगी फैला रखी है। बेटे-बहू का मूड खराब हो गया। बच्चे तो दूर से ही देखकर अपने कमरे में चले गए। वृद्ध के बेटे का गुस्सा अपनी सीमा लाँघ गया और उसने उस हाड़-मांस के वृद्ध को उठाकर सीधे पटक दिया। अंदरूनी चोट के कारण वह वृद्ध ऐसा बिस्तर पकड़ा कि उसका उठना मुश्किल हो गया था। अंततः दो दिनों के बाद उसके प्राण शरीर से निकल गए।

आसपास के लोग यही कह रहे थे कि इतने कष्टमय जीवन से बाबा को मुक्ति मिल गई। इधर बेटे-बहू भी हल्का महसूस कर रहे थे क्योंकि उन्हें वृद्ध पिता से मुक्ति मिल गई थी।


Image : Old Man in Sorrow (On the Threshold of Eternity)
Image Source : WikiArt
Artist : Vincent van Gogh
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