कॉफी में क्रीम
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- 1 December, 2023
कॉफी में क्रीम
अपने विभाग द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का प्रबंध करते हुए वह इधर से उधर लगभग दौड़-सी रही थी। कई देशों के प्रतिनिधि आए हुए थे। महीनों पहले उनके खाने-पीने-ठहरने की व्यवस्थाएँ हो चुकी थीं। आज पहला दिन था और पहले सेशन की सारी जिम्मेदारियाँ इवा पर थीं। सब कुछ योजनानुसार चल रहा था। दस बजने में कुछ ही मिनट शेष थे। सूट-टाई में पुरुष और रंग-बिरंगे ब्लैजर में महिलाएँ, एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए, विश्वस्तरीय कॉन्फ्रेंस का खूबसूरत नजारा पेश कर रहे थे। की-नोट स्पीकर भी आ चुके थे। छात्रों, प्राध्यापकों व अतिथियों से खचाखच भरा था हॉल। सब कुछ इवा के नियंत्रण में था। वह आश्वस्त भी थी कि कहीं कोई गड़बड़ नहीं होगी, सिवाय तकनीकी परेशानी के। हालाँकि आईटी विभाग के सारे नंबर थे उसके पास, आईटी से उसका परिचित जैसन भी आने वाला था दिनभर के लिए, लेकिन वह अब तक कहीं नज़र नहीं आया था।
अब उसे सेशन शुरू करना था और जिस बात की आशंका उसे सदैव रहती है, वही हुआ। प्रोजेक्टर चालू नहीं हुआ। किसी तरह चालू हुआ तो फाइल से कनेक्ट नहीं हो रहा था। यूएसबी से, ईमेल से, हर संभव प्रयास कर लिए। सही क्लिक मिली ही नहीं। इवा के पसीने छूट रहे थे। इन दिनों हर कोई तो अपना लेक्चर पावरपॉइंट से करता है। अब करे तो क्या करे! इतने दिनों का कठिन परिश्रम इस जरा-सी तकनीकी रुकावट से व्यर्थ हो जाएगा। जैसन अब तक कहीं नहीं दिखा था। अपने साथी को माइक देकर, कार्यक्रम में हो रहे विलंब के लिए क्षमा माँगने को कहा और तुरंत आईटी को फोन लगाया।
किसी अपरिचित की आवाज़ थी। इवा की घबराहट भरी आवाज़ से वह अनुमान लगा पा रहा था कि यह इमरजेंसी है। वह बोला, ‘प्लीज रिलेक्स, आप हॉल नंबर दीजिए, मैं वहाँ पाँच मिनट में पहुँच रहा हूँ।’
सचमुच, कुछ ही मिनटों में पहुँच गया वह। लाल-पीले-नीले-काले, कई उलझे वायरों के फैले जाल से उसने कुछ वायर इधर से उधर किए। सिस्टम बंद करके चालू किया और मिनटों में सब कुछ सेट कर दिया। इस आश्वासन के साथ कि इस सेशन के खत्म होने तक वह यहीं रहेगा। की-नोट स्पीच के बाद, एक के बाद एक वक्ता आते रहे। बगैर किसी रुकावट के सब कुछ स्मूथ चला। कार्यक्रम शानदार रहा। बधाइयों के बीच उसे याद आ रहा था वह, जो देवदूत बन कर आया था। वह कौन था, उसका नाम तक न पूछ पाई थी। इतना ही दिमाग में था कि वह एक ब्लैक, आकर्षक नवयुवक था जिसका सब कुछ ब्लैक था। ब्लैक सूट, ब्लैक शर्ट, ब्लैक टाई, ब्लैक जूते। खैर, आज तो अब लेट हो गया लेकिन कल ज़रूर उसे फोन करके धन्यवाद देगी।
अगली सुबह याद करके उसी नंबर पर आईटी विभाग में फोन किया। वह बॉब था। उसने आवाज़ पहचान ली। ‘अभी आता हूँ, आज कहाँ है आपका सेमिनार?’
‘जी सेमिनार के लिए नहीं, मैंने तो आपको सिर्फ धन्यवाद करने के लिए फोन किया था। जैसन छुट्टी पर है क्या?’
‘हाँ, उसके परिवार में कोई इमरजेंसी थी। वह एक महीने के लिए अपने देश चला गया है।’
‘तो आप यहाँ एक महीने के लिए ही हैं शायद!’
‘जी नहीं, मेरी नयी पोस्टिंग है। मैंने कल ही ज्वाइन किया। मैं वैंकूवर से टोरंटो आया हूँ।’
‘अच्छा! आते ही आपने मेरे विभाग की समस्या को चुटकियों में हल किया। आपका स्वागत है हमारे कॉलेज में।’
‘जी, धन्यवाद, आप कई सालों से हैं यहाँ?’
‘जी नहीं, इसी साल मास्टर्स खत्म करके ज्वाइन किया है।’
‘मैंने भी इसी साल पढ़ाई खत्म की है। आप यहाँ फ्रेंच पढ़ाती हैं?’
‘जी, और जिस सेक्शन में मेरी कक्षाएँ हैं वे सभी पुराने सिस्टम पर हैं। रोज मेरी कक्षा के पहले आईटी वाले आकर फिक्स करके जाते हैं। अभी तक तो जैसन की जिम्मेदारी थी यह।’
‘कक्षाएँ कौन सी हैं, बिल्डिंग, रूम नंबर, टाइम आदि की लिस्ट भेज दीजिए। मैं ध्यान रखूँगा।’
‘ज़रूर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने सेमिनार में मुझे जिस तरह से रेस्क्यू किया था वह सचमुच बहुत बड़ी मदद थी।’
वह दिन था और आज का दिन, इसके बाद वह कक्षा में पढ़ा रही हो या कहीं प्रेजेंट कर रही हो, बॉब को एक अलर्टमैसेज जाता और उसकी तकनीकी समस्याओं का समाधान हो जाता। अपनी सक्षमताओं में यह तकनीकी योग्यता कभी न जोड़ पायी वह। हमेशा पैनिक हो जाती। हड़बड़ी में इधर-से-उधर बटन दबते रहते और जो कुछ चालू होता वह भी बंद हो जाता। हर बार विशेष धन्यवाद का मैसेज कर देती बॉब को। एक दिन सोचा, ‘उसकी इतनी मदद के बदले कम-से-कम एक बार उसे कॉफी तो ऑफर कर ही सकती है।’
फोन बॉब ने ही उठाया, ‘इवा, मेरे पास पहले से ही आपके मिलियन से ज्यादा धन्यवाद हैं।’
‘आज मैंने धन्यवाद के लिए नहीं, कॉफी के लिए फोन किया था।’
‘अरे, क्यों नहीं, कहाँ और कब!’
‘मिंटोहॉल के सामने, सेकेंड कप कॉफी शॉप पर मिलें, एक बजे के करीब?’
‘ज़रूर, मिलते हैं।’
आज वह सामान्य कपड़ों में था, मगर थे काले ही। एक दूसरे के बारे में औपचारिक जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ। कॉफी पीते हुए एक बात ज़रूर नोटिस की दोनों ने कि बॉब कॉफी में क्रीम मिलाता है और इवा ब्लैक कॉफी पीती है। चीनी दोनों ही नहीं डालते। थोड़ी बहुत बातें करते हुए इवा ने महसूस किया कि वह बहुत संयत है। नाप-तौल कर बोलता है, पूरे आदर के साथ। उसका एक ख़ास अंदाज़ है, देखने का और बात को आगे बढ़ाने का। शहर नया था उसके लिए, सेटल होने की कोशिश जारी थी। अपनी-अपनी पढ़ाई की, अपने-अपने कैरियर की चर्चा हुई। उसके आईटी के अपने शौक के बारे में, इवा की फ्रेंच टीचिंग की चुनौतियों के बारे में बातें हुईं। अच्छा लगा बात करके। जाते हुए दोनों ने सोचा कि क्यों न अगले सप्ताह कॉफी के लिए मिला जाए।
और उसके बाद लगभग हर सप्ताह कॉफी का यह सिलसिला जारी रहा। जो भी पहले पहुँचता कॉफी मेज़ पर तैयार मिलती। बातों का सिलसिला ऐसा चलता कि समय पता ही नहीं चलता। वैंकूवर और टोरंटो की कार्य पद्धति, दोनों शहरों के साथ जुड़ी ख़ास बातें जिनके दायरे विस्तृत होते। निजी बातें न कभी पूछी जातीं, न बतायी जातीं। अब चर्चा सहज हो चली थी। औपचारिकताएँ धीरे-धीरे कम हो रही थीं।
एक दिन इवा ने पूछ ही लिया, ‘आप हमेशा अलग-अलग तरह के ब्लैक कपड़े पहनते हैं। इस च्वाइस की कोई ख़ास वजह?’
‘क्योंकि मैंने ब्लैकनेस को अपने जीवन में अंदर तक उतारा है। यह मेरी तरह हर रंग को अपने में सोख लेता है।’ उसकी वह मुस्कान बहुत कुछ कह रही थी। इवा को उसका जवाब गहराई से भरपूर लगा–‘आप तो अच्छी-ख़ासी दार्शनिक बातें करते हैं, आपको कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग में होना चाहिए।’
‘वहाँ होता तो फ्रेंच विभाग की मदद कैसे करता!’
मुस्कुरा दी इवा। बॉब का यह सेंस ऑफ ह्यूमर उसे बहुत पसंद था। कई बार सहज ही कही गई उसकी बात हँसा देती थी।
‘हमेशा तो नहीं, पर अधिकांशत: सफेद कपड़ों में नज़र आती हैं आप!’
‘मेरा जवाब आपकी तरह दार्शनिक नहीं है, मुझे सफेद रंग पहनना बहुत पसंद है, बस।’
‘इससे आपका व्यक्तित्व मैच करता है।’
बदले में उसे नहीं कह पाई कि ‘ब्लैक पहनने से आपका व्यक्तित्व मैच होता है।’ हालाँकि, आज तक कभी बॉब की बातचीत से ऐसा नहीं लगा था कि उसे अपने ब्लैक होने से कोई शिकायत है। न ही इवा को अपनी जड़ें कोरिया से जुड़ी होने से कोई शिकायत थी। दोनों का अपना-अपना ठोस वजूद था। बॉब का व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि उसकी कद-काठी, हाव-भाव और काम के प्रति निष्ठा उसे औरों से अलग करते थे। लंबा, मजबूत और स्लिम। कसरती, सुगठित शरीर। सौम्यता से बात करता और हल्के-फुल्के पंच देता जो इवा के होंठों पर एक चौड़ी मुस्कान ले आते।
इवा कोरियन बेबी डॉल की तरह थी। चिकनी-दूधिया मरमरी देह, सुर्ख गुलाब की पँखुड़ियों जैसे होंठ और सीधे, लहराते-चमकते बाल। छुईमुई-सी लड़की। अपने कपड़ों की ख़ास स्टाइल से और भी आकर्षक दिखती। इवा के सफेद कपड़ों के साथ बॉब के काले कपड़ों का जो साथ होता तो ऐसा लगता जैसे बॉब उसका सिक्योरिटी गार्ड हो। दो लोगों में जितनी विभिन्नताएँ हो सकती हैं, उतनी उन दोनों के बीच मौजूद थीं। कहीं से कहीं तक कोई साम्य नहीं था। दोनों का जन्म कैनेडा के दो अलग-अलग शहरों में हुआ था। उनके पिता जब छोटे थे तब परिवार यहाँ आया था। बॉब का परिवार यूगांडा से और इवा का कोरिया से।
उन दोनों में दोस्ती क्यों है, यह भी आश्चर्य की बात थी। दोस्ती के तार जुड़े होने की वजह भी किसी को समझ नहीं आती। दोनों का खाना अलग, संस्कृति अलग, बोलने का ढंग अलग, चमड़ी अलग। एक मलाई की तरह उजली और दूसरा ब्लैक कॉफी की तरह काला। रंग, धर्म, जाति, सब कुछ अलग। एक ही संस्था में होने के बावजूद आईटी और फ्रेंच विभाग का भी कोई ख़ास कनेक्शन नहीं था, सिवाय कक्षाओं में टेक्निकल सपोर्ट के। दोनों के रास्ते अलग होकर भी जुड़ गए थे। बहुत अच्छे दोस्त थे वे दोनों अब। विचारों का तालमेल कुछ ऐसा कि साथ बैठकर कॉफी पीना जैसे अनिवार्यता हो गई थी वरना दिन सूना-सूना-सा लगता।
इवा से कहता बॉब, ‘तुमसे दोस्ती निभाना मेरे लिए एक चुनौती रही है, पर मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया है।’
इवा मुस्कुराती, ‘चुनौतियाँ मुझे भी पसंद हैं। देखते हैं कौन पीछे हटता है।’
मात्र इस चुनौती की वजह से दोस्ती टिकी हुई थी, या फिर आपसी समझ थी, या फिर टेक्निकल सपोर्ट, जो भी था दोनों में से किसी ने इस पर ज्यादा सोचा नहीं था। कॉफी का साप्ताहिक दौर अब धीरे-धारे दैनिक हो चला था। रोज शाम की मुलाकात तय थी। जब रोज मिलने लगे तो इवा की दोस्त स्टैफनी ने मज़ाक में कहा था–‘तुम दोनों को साथ देखकर लगता है जैसे किसी ने ब्लैक कॉफी में क्रीम डाल दिया हो।’
इवा उसके इस तीखे कमेंट को मीठा बना देती, यह कहकर–‘यह तो सच है।’ तब उसके सामने बॉब होता और उसका कॉफी कप होता। ब्लैक कॉफी में क्रीम मिलाता, चुस्कियों में कॉफी पीता हुआ, हर घूँट के साथ गर्माहट को भीतर तक समेटता हुआ। दोनों में एक समानता ये थी कि दोनों ही बेहद होशियार-प्रोफेशनल्स थे और अपना काम बेहद ईमानदारी से करते थे। यह एक समानता सौ विभिन्नताओं के बराबर थी। कभी किसी ने सीमा रेखा का उल्लंघन नहीं किया। ऐसी कोई स्थिति आई ही नहीं। एक-दूसरे की पसंद-नापसंद का भी ख़याल था दोनों को। इवा को ब्लैक एंड व्हाइट का कॉम्बिनेशन शुरू से बहुत पसंद था। एक बात उसे बहुत भा गई थी कि साथ बैठकर कॉफी पीने के अलावा न उसने कभी कुछ चाहा, न कभी कुछ कहा। जन्मदिन के तोहफे देने का या किसी भी औपचारिकता को निभाने की एक ही जगह थी–किसी कॉफी हाउस में बैठकर कॉफी पीना।
वे दोनों अपनी-अपनी जगह पर थे, अपनी-अपनी हदों का आदर करते। दोनों की अपनी पसंद भी वही थी। लेकिन यह देखने वालों को पसंद नहीं था। बॉब के दोस्त उससे कहते–‘दो अलहदा छोर कभी नहीं मिल सकते।’ पैसों की नहीं, सिद्धांतों की या पोस्ट की भी नहीं, बात दोनों के रूपरंग की थी। जिसके बारे में वे दोनों सोचें, न सोचें, लोग तो सोच ही रहे थे।
इवा के दोस्त भी उससे पूछते–‘तुम और बॉब डेट कर रहे हो क्या?’
‘नहीं, बिल्कुल नहीं। बस वह कक्षाओं में आता है तो अच्छी पहचान हो गई, टेक्निकल सपोर्ट है मेरा।’
‘प्रैक्टिकल सपोर्ट की कोई गुंजाइश रखना भी मत!’
‘सिली! क्या किसी से यूँ ही दोस्ती नहीं हो सकती!’
इवा और बॉब मिलते तो इसका जिक्र भी होता–‘लोग नहीं चाहते कि मैं तुमसे दोस्ती रखूँ।’
‘बिल्कुल नहीं चाहते, मुझे पता है। पर जब भी तुम दोस्ती न रखना चाहो, बस मुझे इशारा भर कर देना, मैं वहाँ से हट जाऊँगा।’ बॉब का यह जवाब इवा को बहुत मान देता, उसे बहुत अच्छा लगता।
सच तो यह था कि उन दोनों के बीच ऐसा कुछ था भी नहीं कि कॉफी मीटिंग को कोई और नाम दिया जा सके। कभी बॉब की ओर से या इवा की ओर से ऐसा कोई संकेत दिखा भी नहीं था, जिससे किसी कोमल-सी चुटकी का भी अहसास होता। कभी बॉब से हाथ मिलाते हुए इवा के मन ने गुन-गुन-रुन-झुन गीत नहीं गाए। कभी आँखों ने उसकी नज़र को गहरे तक कैद नहीं किया। शायद वह जानती थी कि नदी के दो किनारे कभी नहीं मिलते। बहता पानी दोनों किनारों को बराबर ही छूता होगा। उसके लिए न कोई किनारा साफ़ था, न कोई मटमैला। न बड़ा था, न छोटा। ऐसे ही दो किनारे थे बॉब और इवा, जिन्हें इनसानियत के बहते पानी ने जोड़ा था, दोस्ती से। इस दोस्ती को बनाए रखने का प्रयास दोनों ने बराबर किया था। ऐसे में किसी तीसरे का कयास उनके लिए कोई मायने नहीं रखता था।
इन बातों पर स्वत: ब्रेक लग गया जब बॉब ने बताया कि उसे मैक्मास्टर यूनिवर्सिटी, हैमिल्टन में बेहतर जॉब ऑफर मिला है। वह यहाँ नोटिस दे चुका है। अगले सप्ताह वहाँ ज्वाइन कर रहा है। दो-ढाई घंटों की ड्राइव थी टोरंटो से। एक बारगी इवा को अच्छा नहीं लगा, उसे भनक भी न लगने दी बॉब ने कि वह कहीं और जा रहा है, पर वह खुश थी उसकी सफलता पर।
वैसे भी इन दिनों ज्यादा सोचने का समय नहीं था। सेमेस्टर खत्म होने वाला था। माँ कोरिया के लिए रवाना हुई थीं। बहुत दिनों से वे अपनी बहन एली से मिलना चाहती थीं। माँ के जाने के बाद से ही वह अपनी कक्षाओं की परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त थी। दिनभर कॉपियाँ चेक करना और रिजल्ट तैयार करना! इसके बाद अगले सेशन तक कॉलेज जाने की ज़रूरत पड़ने वाली थी नहीं। सभी कक्षाओं का रिजल्ट सबमिट करके राहत की साँस ली ही थी कि कोरिया से फोन आया। माँ को हार्टअटैक आया था। उनके सीने में बहुत दर्द था और आईसीयू में थीं। लगातार कोरिया से संपर्क बनाए हुए थी इवा। कोरिया उड़ान के टिकट मिल नहीं रहे थे। टोरंटो से क्या कर सकती थी भला, सिवाय परेशान होने के। घर की दीवारें खामोशी से उसे फोन-पर-फोन घुमाते देख रही थीं।
फिर से फोन घनघनाया। आंटएली ने रोते-रोते बताया कि आईसीयू में उन्होंने दम तोड़ दिया। वह स्तब्ध थी। पत्थरों की तरह चुभते-चुभते आँसू सीने में जम गए थे। माँ के अलावा उसका था ही कौन! पिता बरसों पहले ही नहीं रहे थे। अब माँ ऐसे कैसे उसे अकेले छोड़ कर जा सकती हैं! एक नहीं, तरह-तरह के दर्द उसे आहत करते रहे।
स्टैफनी के संदेशों का एक ही लाइन में जवाब दिया–‘प्लीज, मुझे अकेला छोड़ दो।’ इस समय वह अपनी माँ के साथ रहना चाहती थी, उनकी यादों के साथ। उनके कमरे की हर चीज़ को छू रही थी वह। कभी लगता, माँ यहीं हैं। उसके लिए नूडल्स बना रही हैं। उसे आराम करने को कह रही हैं। दोनों बहुत सारी बातें कर रहे हैं। वह माँ को अपने शरारती छात्रों के बारे में बता रही है और वे हँस रही हैं। निश्छल हँसी, जो अब घर में कभी नहीं गूँजेगी। तस्वीरों में कैद हो जाएगी।
फोन की घनघनाहट थम ही नहीं रही थी। यंत्रवत फोन उठा लिया इवा ने। बॉब का ‘हैलो’ भर सुना और तुरंत फोन रख दिया। ये पल अपनो के लिए थे, बॉब कौन उसका अपना है! गलती से फिर किसी का फोन न उठा ले, यह सोच उसने स्विच ऑफ कर दिया।
माँ के क्लोजेट में उनके कपड़ों को छू रही थी। सिलवटों से भरे कपड़े जिन्हें पहनने से पहले इस्त्री करती थीं माँ। उनके चेहरे की सिलवटें भी कुछ ऐसी ही थीं जिन्हें बाहर जाने से पहले मेकअप से ढँक लेती थीं। अपने डायमंड के इअरिंग यहीं छोड़कर गई थीं। सफर में कोई कीमती चीज़ साथ नहीं रखती थीं। उसका मन हुआ वे इअरिंग पहन कर देखे। आइने के सामने उन्हें लगा कर देखा तो पीछे से सचमुच माँ की शक्ल दिखाई दी–‘बहुत सुंदर’ कहते हुए। धीरे-धीरे वह प्रतिच्छाया इवा के शरीर में विलीन हो गई। इस अहसास के साथ मानो माँ ने इवा के व्यक्तित्व में स्वयं का विलय कर दिया हो। वह आइने में स्वयं को नहीं, माँ को देख रही थी मुस्कुराते हुए। वह वहीं बैठ गई। आँखें बंद थीं, निस्तेज और निष्प्राण-सी। बहुत देर तक, बहुत कुछ घूमता रहा बंद आँखों के सामने।
थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी। हतप्रभ-सी इवा ने देखा–घर के दरवाजे पर बॉब दो कॉफी कप की ट्रे के साथ खड़ा था। बगैर कुछ बोले बॉब ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया। उसके रुई जैसे कोमल और दूधिया हाथ बॉब के मजबूत हाथों में थे। अनदेखा-अनकहा जो था, शब्दों-रंगों से परे जो था, वह कई किताबों में था, कलाकृतियों में था, लेकिन इस समय उन दो गुनगुनी हथेलियों के बीच था।
गर्म हथेलियों की तपन ने इवा के जमे हुए आँसुओं को बहा दिया। शाम का धुँधलका अपने चरम पर था। काले बादलों का झुंड, सफेद बादलों के साथ एकाकार होते, डूबते सूरज की लालिमा में विलीन हो रहा था। दिन था न रात, सिंदूरी शाम थी।
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Image Source : WikiArt
Artist : Amedeo Modigliani
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