मैं अंडमान हूँ

मैं अंडमान हूँ

द्वीपों का द्वीप,
मैं अंडमान हूँ
भारत के गर्व का
कला, संस्कृति, पर्व का,
मैं स्वाभिमान हूँ,
मैं अंडमान हूँ॥1॥

मेरे गर्भ में समाया
साहित्य का स्रोत
विरासत की कहानी
सपूतों की कथा-व्यथा,
उसकी पीड़ा, यातना
को, झेलती हुई,
मैं, विद्यमान हूँ।
मैं अंडमान हूँ॥2॥

मेरे इतिहास को खँगालने
आते, यहाँ अध्येता
करते अनुसंधान
गोष्ठियों का आयोजन,
ढूँढ़ते मेरे अंदर भारत की आत्मा,
मैं, उन्हें बताती हूँ–
अपनी थाती, उस पर लगे ग्रहण-का खतरा,
और त्याग शौर्य बलिदान का, वह क्षण
मैं, माँ बंदिनी
बिसूर रही थी,
इन्हें तुम्हें और उन्हें,
पाने को मुक्ति-मुक्ति का क्षण,
उसी गरल का करती मैं पान हूँ
मैं अंडमान हूँ॥3॥

यह वंदिनी माँ,
चाहती है कहना,
वह सब, जिसके लिए
पैदा किए हैं लाल।
हा! हंत खेद
आज यह विवश और
लाचार होकर,
दु:शासन की सभा में खड़ी
द्रोपदी की तरह पुकार रही,
कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण
है न कोई न्यायकर्ता,
फिर भी कहते, बुद्धिमान हूँ।
मैं अंडमान हूँ॥4॥

हमारी ही तो संताने है जारवा
सप्त आदिम जातियों में प्रसिद्ध
उन्हीं से मेरा मिलना कर दिया निषिद्ध
ये आज भी, घुमंतू और नग्न हैं,
इनके उनके टुकड़ों पर मग्न हैं।
देख इन्हें दुखता है दिल
समृद्धवान भी कुछ नहीं करता
इन्हें कब मिलेगा,
रोटी कपड़ा और मकान?
कौन आएगा उद्धार करने
कौन बनेगा इनका भगदान?
इसीलिए मैं भी परेशान हूँ,
मैं अंडमान हूँ॥5॥

मेरा ही द्वीप हैवलाक
सब द्वीपों से न्यारा है
असीम सुषमा बिखेरती प्रकृति,
बन गई है सृष्टि की अनुपम कृति
यही बैठ जलयान किलोमीटर पचास
पहुँचते हैं लोग,
नील टापू के पास,
दिखता वहीं द्वीप, नायक सा,
भव्यमान मेरा द्वीप हैवलाक
शांति का टापू है।
न वहाँ कचड़ा न कापू है।
उसी की गोद में,
रखे शिर सोती हूँ
और होती वहीं गतिमान हूँ।
मैं अंडमान हूँ॥6॥

करता मुक्ता विहार
बालुका अमल धवल तटों पर
आया युवकों का दल
हो रहा, प्रमुदित,
निहार सागर-गर्भस्थल,
सीपी मोती मछलियों की
अठखेलियाँ, करती मन को विह्वल
फिर तट पर आया दल,
रुका ही था एक पल,
दिखा पडाकी सागौनी वनों का
लहराता द्रुम-दल
मानो वे मना रहे हैं,
आजादी का जश्न
यहाँ पूछ रहे हैं प्रश्न
उनके आने का,
गगनोन्मुख पडाकी वनों
में, लटकती बल्लरियों को पकड़,
ठहक गया युवकों का दल,
आयुशेष हो चले वृक्षों से,
करने लगा संवाद,
पूछता इतिहास का प्रश्न
वृद्ध इतिहास का प्रश्न,
वृद्ध पडाकी बल्लरियाँ
दे रही है मौन में उत्तर,
हाँ, मैं हूँ वही,
पर, अब बनी खलिहान हूँ,
मैं अंडमान हूँ॥7॥

आया म्यूजियम द्वार,
भव्यभवनों में हैं खड़ी,
दिव्य मानुष आकृतियाँ अपार
दे रही हैं साक्ष्य,
अपने पूर्वजों के त्याग का,
बलिदान का, मान का अपमान का
वहीं आगे ढोल बजाती, आकृतियाँ
दे रही हैं प्रमाण,
अपने पाहन होने का,
मैं भी वहीं विद्यामन हूँ
मैं अंडमान हूँ॥8॥

भारत की महिमा अनंत
है वहाँ विराजित एक संत
चिन्मया मिशन के पूत संत
कीर्ति प्रसरित जिनकी दिंगत॥9॥

सुखसागर उनके परम शिष्य,
निर्मल पुनीत तन कीर्तिमान
जिनकी वाणी में ओज अधिक
सुख देता जो है विद्यमान॥10॥

अतिशय पूजनीय कीर्तिधाम,
जाकर देखा अतुलधाम
बलिदानी गाथाएँ आप्तकाम
जिनसे होती हैं मूर्तिमान॥11॥

उन वीरों की आवाज़ों में
गूँजता जहाँ है एक रोर
बेरी जेलर के हंटर से
वीरों का हो रहा शोर॥12॥

जाकर देखा शंपाप्रदर्श
हृदय विदारक उत्पन्न मर्ष
हुतात्मओं की आहों से
मन विचलित कर लिया कर्ष॥13॥

जननी को मुक्ति दिलाने को
बलिदानी जहाँ हुए निरुद्ध
सेल्युलर जेल वही कहलाता;
देख जिसे मैं हुआ क्रुद्ध॥14॥

सेल्युलर जेल यमपुरी सदृश
सप्त अवलियों में रेखांकित
जो निरुद्ध इसमें हो जाता
मृत्युवाद ही बाहर आता॥15॥

इसी जेल में बंद हुए थे
सावरकर से वीर महान
फिर भी जिंदा होकर निकले
था उनको अपना देशाभिमान॥16॥

सन् अठारह सौ अट्ठावन
मार्च बीस को पहली बार
दो सौ बलिदानी पूतों को
बना कैदी दिया उतार॥17॥

ऐसी ही काल कोठरी में
सावरकर भी तो बंद हुए
वहीं कील से लिख करके
क्रांति ज्वाल के छंद दिए।
ऐसे ही कितने वीरों ने
भोगा उस काला पानी को
यातना सही पर आह नहीं
जेलर बेरी के मानमानी को।
होते अत्याचार बहुत
संकट में प्राणों का लाला था।
करवाते घनघोर परिश्रम
डेविड बेरी से पाला था॥18॥

कोल्हू में समा गई उनकी,
तरुर्णाइ की सारी उमंग
पर झुके नहीं सारे कैदी
आखिर जीती राष्ट्र जंग॥19॥

श्री वीर विनायक दामोदर
सावकर अग्रज सहित बंद
एक दूसरे से न मिल सके
था ऐसा प्रहरी जयचंद॥20॥

पंद्रह मील की दूरी पर
एक हॉफ्रीगंज ठिकाना था
चौवालिस सेनानी भूँज दिए।
हैवानियत का ऐसा जमाना था॥21॥

इन वीरों के श्रम सीकर से
रास द्वीप की दिव्य छटा
ऐसी लगती है आज हमें,
जैसी पूनों की चंद छटा॥22॥

फिरंगियों का मुख्यालय
यही मनोरम धाम था।
जीर्ण-शीर्ण भवनों का समूह
और मंदिर द्वय अभिराम था॥23॥

इन भवनों पर आज चतुर्दिक
लतिकाएँ इठलाती हैं।
खरगोशों और काक मयूरों–
की, आवाजें आती हैं॥24॥

असीम सिंधु के गर्जन से
नैसर्गिक सुषमा दिखती अपार
निर्निमेष मैं देख रहा,
लगता था जैसे स्वर्ग द्वार॥25॥


Image: Beauty Of Andamans
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain