ये दिल माँगे मोर

ये दिल माँगे मोर

जगद्गुरु की ऐसी-तैसी
ये दिल माँगे मोर देश है
अब तो मान गए पंडित जी
कितना यह लतखोर देश है!

रोम-रोम में राम बसा करते थे पहले
अब तो केवल रोम-रोम है, राम कहाँ है
राजधानियों में हैं गोरी और गजनबी
श्रद्धा के मंदिर को अब विश्राम कहाँ है!

भाषा-भूति-जाह्नवी सब हो चुकी प्रदूषित
पूज रहे तुम जिसे, साधु का मात्र वेश है।

धन्य तुम्हारी पिटकोंवाली सत्य-अहिंसा
अमृत पुत्र सब दस्यु-पुत्र से हुए हताहत
वर्णसंकरी लोकतंत्र के गाल समायी
चाणक्यों की अमल-धवल अनमोल विरासत

यज्ञ शिखा से निकली ऊर्जा भूलुंठित क्यों?
आदित्यों के सिंहासन को यही क्लेश है।

ऐसी सुरा पिलायी ठग-ठगिनी ने आकर
राजलक्ष्मी रूठ गई अपमानित होकर
पंचककारों का हठ पंचमकारों वाला
मुर्दाखोर सभी चुप हैं चमरौधा खाकर

कूद-फाँद कर बैठ गए कुर्सी पर चूहे
कैसे कुतर-कुतर खा जाएँ, पशोपेश है।


Image : Portrait of Auguste Renoir
Image Source : WikiArt
Artist : Frederic Bazille
Image in Public Domain