…क्योंकि सपना है अभी भी
- 1 April, 2019
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- 1 April, 2019
…क्योंकि सपना है अभी भी
…क्योंकि सपना है अभी-भी
इसलिए तलवार टूटी, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएँ, कौन दुश्मन,
कौन अपने लोग
सब कुछ धुँध धूमिल
किंतु कायम युद्ध का
संकल्प है अपना अभी-भी
क्योंकि सपना है अभी-भी!
तोड़कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा
विदा बेला, यही सपना भाल पर
तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब
तुमको कहाँ याद होगा)
किंतु मुझको तो इसी के लिए
जीना और लड़ना
है धधकती आग में तपना अभी-भी
…क्योंकि सपना है अभी-भी!
तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
यह तुम्हीं हो, जो टूटती
तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूँज जाती हो
और मुझको ढाल छूटे
कवच टूटे हुए मुझको
फिर याद आता है कि
सब कुछ खो गया है–
दिशाएँ, पहचान, कुंडल-कवच
लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत मैं,
तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी-भी!
इसलिए तलवार टूटी,
अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएँ
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग,
सब कुछ धुँध-धूमिल
किंतु कायम युद्व का
संकल्प है अपना अभी-भी
…क्योंकि सपना है अभी-भी!
Image : Battle of Gideon Against the Midianites
Image Source : WikiArt
Artist : Nicolas Poussin
Image in Public Domain