बराबरी
- 1 June, 2016
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- 1 June, 2016
बराबरी
नई नवेली बहू शालू अपने कमरे में लेटी हुई छत पर टकटकी लगाए अपने सवाल का जवाब ढूँढ़ रही है, पर उसकी नजर छत के जालों में उलझकर रह गई है।
उसे स्मरण हो आया। उसकी सहेलियों ने हिदायत दी थी, ‘किसी भी सूरत में अपने पति के पाँव न छूना।’ सास ने एक बार कहा भी था, लेकिन वह कितनी चुस्ती से इसे टाल गई थी–यह सोचकर अब उसे हैरानी हो रही थी। सहेलियों की यह बात भी काम की निकली कि पति को उसके नाम से बुलाना। जब वह मुझे नाम से बुला सकता है तो मैं क्यों नहीं नाम ले सकती? मुझे आज तक यह भी समझ नहीं आया कि पत्नी की उम्र पति से दो-तीन साल छोटी ही क्यों अच्छी मानी जाती है। कहीं इसमें भी औरत को दबाकर रखने का षड्यंत्र तो नहीं?
सोचते-सोचते वह आज के प्रसंग पर आ गई। आज नास्ते में जब वह पति के सामने तीसरा पराठा परोस रही थी, तो पति ने धीरे से कहा, ‘एक कप चाय।’ तभी सास बोल पड़ी, ‘ये तीन बार कह चुका है, तू चाय क्यों नहीं देती?’
सुनकर उसका दिमाग भन्ना गया था। तीनों को मालूम है कि पति ने चाय के लिए एक ही बार कहा था। शालू से रहा नहीं गया। रसोई से चाय लाते समय वह बोली, ‘सासू माँ, क्या आपकी सास ने भी आपके साथ ऐसा सलूक किया था और अगर वह गलत था तो यह गलती कब तक चलती रहेगी?’ सुनकर सास की आँखों में अंगारे भर गए थे, लेकिन मुँह पर ताला लग गया था।
बहू को याद आया, उसने कहीं पढ़ा था, ‘औरतों की गुलामी सासों के बल पर कायम है।’ सोचते-सोचते वह झटके से उठी–‘इन जालों को वह हटाकर रहेगी।’
Image: Pearltrader and his wife, leaf from Bound Collection of 20 Miniatures Depicting Village Life
Image Source: Wikimedia Commons
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