आरक्षण

आरक्षण

जयमाला और नाश्ते के बाद जनवासे में समूह में बँटे लोग बहस-मुबाहसे में मशगूल थे। बात चलते-चलते जब आरक्षण तक आ पहुँची तो वर्मा जी ने कुपित होते हुए कहा–‘बहुत ही गलत नीति है सरकार की। इस आरक्षण की वजह से तो योग्यता की कद्र ही नहीं रह गई है। जाकर देखिए जरा दफ्तरों में, कामकाज का कैसा हर्जा हो रहा है? आता-जाता कुछ नहीं पर आरक्षण के बल पर कुर्सी पर कब्जा जमा लेते हैं। देश का तो भट्ठा बैठा दिया है।’

पर आरक्षण तो इस देश में सदा से ही रहा है, वर्मा जी? ये कोई नई बात तो नहीं?’ पांडेय जी ने प्रतिप्रश्न किया था।

‘क्या बात करते हैं आप भी! आरक्षण तो आजादी के बाद संविधान द्वारा दिया गया है, पहले कहाँ था? बोलिये?’

‘पहले भी था, आज भी है और ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि आगे भी रहेगा। जब तक आदमी में ईमानदारी, नैतिकता और देशप्रेम नहीं होगा।’

‘अब आप मुद्दे से भटक रहे हैं।’ वर्मा जी कुटिलता से मुस्कुराये।

‘नहीं, मैं भटक नहीं रहा। देखिए, आपने अपने भाई की खातिर डेढ़ लाख में नौकरी खरीदी कि नहीं? ये भी तो एक तरह का आरक्षण ही है? पैसे और पैरवी के बल पर सवर्ण भी तो नौकरी आरक्षित कर लेते हैं कि नहीं, कहिए? और जैसे आरक्षण वाले जाकर अपनी अयोग्यता से देश और विभाग का कबाड़ा करते हैं, वैसे ही तो आपका भाई भी करेगा? उसमें भी तो प्रतियोगिता पास करने की योग्यता नहीं है?’ पांडेय जी ने खुलासा किया था।

‘विजय तो धीरे-धीरे सीख ही लेगा काम काज।’ वर्मा जी झेंप गए थे।

‘तो फिर सरकारी आरक्षण पाने वाले भी सीख ही लेंगे, ये बात क्यों नहीं समझ में आती है, आप आरक्षण विरोधियों को? अयोग्य तो दोनों ही हैं। नौकरी की निर्धारित योग्यता तो दोनों में ही नहीं है। विरोध करना है तो दोनों ही तरह के आरक्षण का होना चाहिए। पैसे और पैरवी वाले तो इसे भी ‘योग्यता’ समझते हैं, नौकरी में आ भी जाते हैं। तब देश की चिंता कहाँ होती है? बोलिये?’

‘आप जैसे लोग के लिए ही कहा गया है–जिस डाल पर बैठते हैं, उसी को काटते हैं।’ वर्मा साहब बुरी तरह खीज उठे थे।


Original Image: Two Seated Men Study for The Covenanters Baptism
Image Source : WikiArt
Artist : George Harvey
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