राम

राम

राम
तुम्हारी छवि तो देश के कण-कण में व्याप्त है
तुम मानव-मूल्यों के असीम प्रकाश के
मूर्त रूप हो राम
मनुष्य तो मनुष्य
हवाएँ, नदियाँ, पेड़, पंछी, फसलें
सभी तुम्हारे महिमा-गीत गाते लगते हैं

उत्सवों और त्योहारों में
तुम्हारी कथा की गूँज भरी होती है
तुम्हारी मनोहारी व्याप्ति देखने के लिए
भीतरी आँखें खुली होनी चाहिए
मुक्त होना चाहिए मन-मंदिर का द्वार

तुम किसी पाषाण-गृह में सिमट
नहीं सकते राम
पाषाण-गृह तो तुम्हारी व्याप्ति की ओर
संकेत करने का माध्यम होता है
किंतु क्या विडंबना है कि
लोग पाषाण-गृह में स्थित मूर्ति को ही
तुम्हारा पर्याय मान लेते हैं
और पूजा मान लेते हैं
अपने द्वारा किए गए जयकार की
चिल्लाहट को।


Image : sri rama breaking the bow
Image Source : WikiArt
Artist : Raja Ravi Verma
Image in Public Domain

रामदरश मिश्र द्वारा भी