तब, यही तो होना था

तब, यही तो होना था

तब, यही तो होना था
क्योंकि ईमानदारी का रोना था
जो कि एहसास-ए-कमतरी का होना था
पता नहीं, ज़िंदगी का ये कौन-सा कोना था
जिसमें सिर्फ़, होना था कि सिर्फ़ रोना था?
और अगर सिर्फ़ रोना था
तो फिर होना क्या था?
और अगर सिर्फ़ होना था
तो फिर रोना क्या था?
क्यों नहीं, क्यों नहीं ये सच होना था
और क्यों नहीं, क्यों नहीं, सच से टकराने का
थोड़ा साहस भी होना था?
शायद, साहस के होने, न होने का रोना था
तब, यही तो होना था।


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Artist : Frantisek Kupka
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