और फिर एक दिन
- 1 August, 2024
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- 1 August, 2024
और फिर एक दिन
और फिर एक दिन
ठहर जाती है रात वक्त के सीने में
स्याह हो जाती हैं भावनाएँ
कुंद हो जाते हैं सपने…
और फिर एक दिन
प्रौढ़ता को पार करते ही
बच्चे अपने नहीं रहते
हो जाते हैं पराई अमानत…
और फिर एक दिन
अवसाद में डूब जाता है बुढ़ापा
स्मृति भ्रंश से ग्रसित पिता
आवाज़ लगाता है अपने बच्चों को
कोई मुझसे मिलने क्यों नहीं आता
माँ रो-रोकर आँसू पोंछ लेती है
पिता के हालात पर…
और फिर एक दिन
शून्य हो जाती है उनके लिए दुनिया
जिनके बच्चे उन पर तरस नहीं खाते
लचर कायाएँ डोलती रहती हैं
इधर से उधर
दूसरों की दया के भरोसे
और फिर एक दिन
समय का अट्टहास काल बनकर
समेट कर ले जाता है
उनके लाव-लश्कर
बच्चे टाँग देते हैं उनके छवि-चित्र
मालाओं के साथ…
Image: roses lilies an iris and other flowers in an earthenware vase with a pot of carnations
Image Source : WikiArt
Artist : Clara Peeters
Image in Public Domain