कविता की भाषा

कविता की भाषा

मैं कविता लिपिबद्ध नहीं
बल्कि कविता में रोपता हूँ स्वयं को
साहित्य के धरातल पर

इस आस में कभी-न-कभी तो
अँखुआएँगी कविता की किल्लियाँ
हरियाएँगी कविता की डालियाँ
फिर कभी जब थक जाऊँगा
इस जीवन-यात्रा में
तब लिखते हुए समय की
इबारत के साथ
बह जाऊँगा भावों की गहरी नदी में

सूरज की नई किरणों के साथ
सुवासित हो रही कविता की भाषा
और मकरंद कण की मानिंद
बिखर रही कविता की आखिरी पंक्ति
कवि क्षितिज के उस पार निहारता है
सूनी पगडंडियाँ…!


Image name: On the Path by Pierre
Image Source: WikiArt
Artist: Auguste Renoir
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