चेहरे

चेहरे

अब भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
सत्ता इसीलिए भीड़ को बरगलाती है
दिखाती है अपना खूँख्वार चेहरा
और भीड़ उसे ही देखती बराबर!

भीड़ का कोई चाल-चरित्र नहीं होता
अक्सर वह पानी सा बहती है
थोपे हुए जज्बात महसूसती है
हत्यारों की गोली झेलती है।

भीड़ कभी-कभी महज भ्रम होती है
कभी दिखती, कभी अदृश्य होती है
कभी चलती, कभी रुकती है
कभी सोती, कभी झुकती है।

एक समय होती थी वह आग-सी
लाती थी तूफान होती थी उफान
एक आक्रामक लीडर
चेहरा था उसका
अब वही चेहरा कहीं खो गया है

अब भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
अब तो एक ही चेहरा
दिखता रात और दिन में
जो भीड़ से अलग दिखता है
भीड़ उसे ही देखती है असहाय-सी

भीड़ को अब कोई नहीं देखता
देखता बस उस एक चेहरे को ही
होता जो भीड़ से बड़ा
शहर के इस चौराहे पर खड़ा!

बेमतलब भीड़ पर हँसता, ठहाका लगाता
भीड़ अब द्रष्टा होती है बस!


Image name: The crowd around the emperor in the gardens of the Elysee
Image Source: WikiArt
Artist: Nicolas Toussaint Charlet
This image is in public domain.