ब्रह्म
- 1 April, 2019
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- 1 April, 2019
ब्रह्म
उन्होंने भीड़ से खुद को ब्रह्म कहा
भीड़ हुई चकित, लोग हैरान, ज्ञानी परेशान
माँगे गए सुबूत ब्रह्म होने के उनसे
हुए वो चुप, कसम ली खामोश रहने की
दिन खामोश, रात खामोश, खामोश जहाँ
चुप चुप्पी सन्नाटा बुनती खिजा चुप
घड़ी दो घड़ी का वक्त चुप
दिन बीते, मौसम गुजरते मुसाफिर से
लेकिन न सन्नाटा टूटा न बर्फ पिघली
न उन्होंने कुछ कहा किसी से
श्रोता पूछते रहे सवाल रोज
और वो खामोश सुनते रहे
मुस्कुराते रहे सफेद दाढ़ी में
खिलते रहे सफेद कपड़ों में
पर बने रहे बुत से चुप
न हिले न डुले न कोई गिले-शिकवे!
आवाज़ें हुईं तेज, शोर और कोलाहल
ज्ञानी बोले–ढोंगी है यह, है पाखंडी,
है शिखंडी-सा साबित करे,
वही है ब्रह्म, है ईश्वर और परमेश्वर
वो चुप ही रहे–
खो गए शून्य में, विचरण किया नभ में
आँखों में भरा अंजन, कपाल पर चंदन
हुए अंतरधान और पानी पर लिखा
यह लेखा–
मैं मौन हूँ, मैं खामोश हूँ, मैं चुप हूँ
चराचर जगत डूबा गहन सन्नाटे में
मैं अनंत शून्य हूँ
आकाश समेटे धरा पर
मैं इसीलिए ब्रह्म हूँ।
ब्रह्म भी मौन होता है
मैं भी जाने कब से मौन साधे बैठा हूँ
तुम्हारे सवाल का मैं जवाब हूँ
ब्रह्म ऐसा ही है
इसलिए मैं ब्रह्म हूँ!
Image name: St. Anthony Visiting St. Paul the Hermit in the Desert
Image Source: WikiArt
Artist: by Matthias Grünewald
This image is in public domain.