जहाँ भी रहूँ

जहाँ भी रहूँ

यहाँ बार-बार लौटूँगा
जहाँ भी रहूँ दो जून की रोटी के लिए

पुरखों के शरीर का नमक गिरा है यहाँ
मैं यहीं पैदा हुआ और पिता की उँगली
पकड़कर दुनिया के रास्तों पर आया
माँ लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाती थी
लीपे हुए आँगन में बैठकर
सब साथ खाते थे

इस घर के बनने की स्मृतियाँ
साथ चलती हैं
मुझे पिता की पसीने से भीगी
कमीज़ याद है

सबसे छोटा था,
बस दु:ख है कि इस घर के दरवाज़े से
अपनों को कंधे पर विदा किया मैंने
अस्सी साल के इस कुएँ का जल
आज भी कितना ठंढा है!
आसमान दिखता है पूरा और
हवा आज भी चारों तरफ से दौड़ती है
अभी हाल तक पहाड़ दिखता था
ऊपर वाले कमरे की खिड़की से

हालचाल पूछते हुए रोज चार लोगों की
आमद होती है दरवाज़े पर
यह बात क्या कम है!

मैं अपने अंतिम दिन
इसी घर के अहाते में गुजारना चाहूँगा
इससे बेहतर मेरे वास्ते
धरती पर कोई जगह और क्या होगी!


Image: lonely-wanderer-1944
In valley and distant jan brueghel the elder
Image Source: WikiArt
Artist : Nicholas Roerich
Image in Public Domain