मनुष्य और जानवर

मनुष्य और जानवर

‘नारायण नारायण’ नारद जी ने इन्द्र के दरबार में प्रवेश किया…उस वक्त सभी देवताओं की मंथली मीटिंग चल रही थी। वैसे तो देवलोक में कलयुग का उतना प्रभाव नहीं था पर ये आगे न बढ़े इसलिए वार्षिक को मसिक कर दिया गया था। जब सभी देवगण माथा-पच्ची कर रहे थे तभी स्वर्ग के मुख्य सूचना अधिकारी नारद जी के ‘नारायण नारायण’ उद्घोष ने सभी का ध्यान भंग कर दिया। सभा में अचानक सुई पटक सन्नाटा छा गया। नारद जी ने सभी देवताओं को प्रणाम किया।

‘आइये देवर्षि इतने हड़बड़ाए से क्यों दिख रहे हैं, सब ठीक तो है?’ देवराज ने प्रणाम का उत्तर दिए वगैर अपना प्रश्न उछाला।

‘इन्द्रदेव पृथ्वी पर घोर अनर्थ होने जा रहा है, आपलोगों ने तुरंत कुछ नहीं किया तो सभी जानवर अकाल मृत्यु को प्राप्त होंगे।’ नारद जी बिना साँस लिए बोल गए।
‘क्या हुआ है देवर्षि आप विस्तार से बताएँ…!’ सभी देवता चिंतातुर स्वर में बोले।

‘प्रभु आप सभी देवगण यहाँ स्वर्गलोक में अपने आनन्द में विलीन हैं और वहाँ पृथ्वीलोक के सभी जानवरों ने सामूहिक आत्महत्या की योजना बनाई है जिसे वह बहुत जल्दी पूरी करने पर अमादा हैं।’ नारद जी ने बड़ी गंभीरता से रहस्योद्घाटन किया।

‘पर क्यों? क्या कारण है जो जानवर ऐसा मनुष्यों जैसा कृत्य करने की सोच रहे हैं? ऐसा हुआ तो वाकई अनर्थ हो जाएगा…पृथ्वी का हर जीव-जंतु सृष्टि के लिए जरूरी है।’ सभी देवताओं के अलग स्वर उभरे।

‘प्रभु मैंने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास किया पर सफल न हो सका, मेरा अनुरोध है अब आप स्वयं चल कर उनसे बात करें और उनकी समस्या उनके ही मुख से समझने का प्रयास करें तभी कुछ हो पाएगा।’ नारद जी महादेव जी से बोले।

‘ठीक है देवर्षि आप उनकी सभा बुलाइए हम स्वयं उनसे मिलेंगे।’ ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों एक साथ बोले।

दो दिन बाद…

जंगल में सभा शुरू हुई…तीनों देव नारद जी के साथ सभा में उपस्थित हुए। आज सारे छोटे-बड़े जानवरों को एक साथ देख देवता खुश हुए। विष्णु जी अन्य देवताओं से फुसफुसा कर बोले कि ‘समस्या वाकई गंभीर लगती है। हर जानवर का भोजन यहाँ मौजूद है फिर भी शेर से लेकर खरगोश तक सब साथ खड़े हैं। कोई किसी का शिकार नहीं कर रहा।’

‘बात तो ठीक कह रहे हैं प्रभु यहाँ तो साँप नेवले भी साथ खड़े हैं! समस्या के चक्कर में ये अपना मूल स्वभाव भी खोते नजर आ रहे हैं।’ महादेव धीरे से बोले। ब्रह्मा जी कुछ बोल पाते तभी महाराज शेर बोले…‘प्रभु हमारे राज्य के मुख्य वक्ता गजराज आपको सबकी समस्या से अवगत कराएँगे।’

…फिर कुछ रुककर…‘क्या करें प्रभु मनुष्यों से सीख कर हमने भी चुनाव प्रक्रिया…पार्टी…वक्ता सब सिस्टम अपने राज्य में लागू कर दिए हैं।’

देवता मुस्कुराए और बोले, ‘…कहिए गजराज ऐसी कौन सी समस्या है जो आपलोग मनुष्यों की राह पर निकल पड़े और आत्महत्या की योजना बना ली?’

‘महाराज क्या करें? आपने मनुष्य को इतनी बुद्धि प्रदान की है कि आज मनुष्य पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली जीव बन चुका है…आज अपनी बुद्धिमानी और मतलबीपन के चलते मनुष्य ने हमारे सारे गुण और दोष भी अपना डाले हैं और बदले में कोसा भी हमें ही जाता है।’ गजराज बड़े उदास स्वर में बोले।

‘अरे गजराज ऐसा भी क्या हो गया? मनुष्य मशीनों का आविष्कार कर शक्तिशाली तो बना है पर तुमलोगों के कौन से गुण ले लिए जरा स्पष्ट करो?’ भगवान ने प्रश्न किया।

‘प्रभु आज इनसान सिर्फ दिखने में ही इनसान बचा है, बाकी हरकतें और स्वभाव में वो हमें भी पछाड़ चुका है। आपके दिए गए दया, धर्म जैसे गुणों को त्याग वो हम सबके गुण दोष अपना चूका है।’ गजराज बहुत ही उदास मन से बोले।

‘क्या कह रहे हो, जानवर के गुण!’ सभी देवता आश्चर्यचकित होकर बोले।

‘जी प्रभु, जो गुण हम जानवरों की पहचान थे आज वे सबके सब मनुष्यों ने अपना लिए हैं और गालियाँ हमें मिलती हैं। आपने हमें हमारी रक्षा के लिए जो गुण दिए थे उन्हें मनुष्य अपने मतलब के लिए अपना रहा है। इन जानवरों में से कुछ जानवर आपको विस्तार से बताएँगे कैसे हमारे गुण आज हमारे दोष बन गए हैं।’ गजराज जी बोले।

‘…महाराज जंगल में मुझसे ज्यादा चालाकी किसी जानवर को नहीं आती थी…अपने इस गुण पर घमंड था मुझे, पर…आज मनुष्य के सामने मेरी चालाकियाँ आउटडेटेड हो चुकी हैं। उनके पास चालाकियों के लेटेस्ट आयडिये हैं। वे तो कही से भी किसी का भी डाटा उड़ा सकते हैं और बदनामी हमें मिलती है।’ लोमड़ी रुआँसी होकर बोली।

सुनकर देवताओं को अचरज हुआ, लेकिन वो कुछ बोल पाते कि तभी गिरगिट बोली, ‘हाँ महाराज, मनुष्य ने तो मुझे भी नहीं बख्सा। आज मनुष्य जितने रंग बदलता है, उतने बदलाव के शेड्स तो आपने मुझे भी नहीं दिए हैं।’

‘अरे प्रभु ये तो फिर भी दीखते हैं, हम तो इतने छोटे हैं कि नजर भी कम आते हैं फिर भी बहुत से मनुष्यों ने अपनी रीढ़ का त्याग कर खुद को हमारी तरह लचीला तक बना डाला है और गाली हम केंचुओं पर पड़ती है।’ अचानक एक पत्ते पर बैठे केंचुए का दुःख सुन प्रभु आश्चर्य में पड़ गए।

अभी देवता कुछ बोलते तभी भेड़िया सामने आया और बोला–‘प्रभु आज इनसान हैवानियत पर उतारू है। बच्चों तक को अपनी बदनीयत का शिकार बना रहा है और

लोग उनकी तुलना हमसे करते हैं, ख़ासकर मुझसे…अब आप ही बताइए प्रभु हम जानवर कभी ऐसा गंदा कृत्य करते किसी ने देखे सुने हैं?’

सारे देवता मानो परेशान हो उठे। सच ही तो कह रहा था भेड़िया। क्या हो गया है आज मनुष्य को…सब चिंतित थे तभी नजर साँप पर पड़ी।

‘अरे साँप महाराज आप क्यों परेशान हैं? आपकी तरह जहर कोई नहीं उगल सकता। आप निश्चिंत रहें…।’ मंत्री गजराज बोले।

‘अरे मंत्री जी आपकी गलतफहमी है। मनुष्य हमसे ज्यादा जहरीला हो चुका है। और तो और आज का मनुष्य तो केंचुली बदलने में हमसे भी फास्ट है। पहले ऐसे गुण कुछ गिने चुने नेताओं के ही पास थे, आज तो आम आदमी भी ऐसा जहर उगलता है, कि उसका इलाज भी असंभव है, ये तो अपनों को भी नहीं छोड़ते और ‘आस्तीन के साँप’ कह कर बदनाम हमें करते हैं!’ साँप दुखी स्वर में फुफकारा।

साँप की बात सुनकर देवता सच में चिंतित हो उठे, ‘…ये तो वाकई चिंता का विषय है। हमें कुछ करना होगा…’ विष्णु जी शिव जी से बोले। अभी महादेव कुछ बोल पाते तभी कुत्ते भूँकने लगे।

क्या हुआ अब…

‘प्रभु हमारी प्रजाति सबसे ज्यादा खतरे में है। हमारी तो हर आदत ही नहीं ली बल्कि घरों में हमें बंदी भी बनाते हैं और हमसे हमारी ही आदतें सीख कर प्रयोग करते हैं…दुम हिलाने से लेकर तलुवे चाटने तक…।’ कुत्ते बोले।

‘और हमारे सामने बसंती को भी नाचने के लिए मना कर दिया, कितनी बेइज्जती है हमारी।’ कुछ कुत्ते धीरे से बोले।

प्रभु को हँसी आने ही वाली थी कि नारद जी ने आँख दिखाई।

फिर नारद जी बोले, ‘प्रभु आपने सुना…आज इनसान और जानवर में फर्क ही नहीं रह गया। एक ही इनसान में कई जानवरों के गुण हैं तो इन्हें लगता है अब पृथ्वी पर इनकी जरूरत ही नहीं रह गई।’

‘हाँ प्रभु, जब इनसान ने अपनी इनसानियत छोड़ हम जानवरों का चोला धारण कर लिया है तो अब पृथ्वीलोक पर हमारी क्या अहमियत रह गई?’ मंत्री गजराज दुखी स्वर में उवाचे।

‘प्रभु जब कोई आपकी जगह आपका चोला धारण कर ले तो कैसा लगता है, ये दुःख आज हम जानवर ही महसूस कर सकते हैं। इसलिए हमारा इस दुनिया से विदा लेना ही सही है।’ बहुत देर से शांत बैठे जंगल के राजा शेर जी बड़े दुखी स्वर में बोले।

‘हम तुम सबका दुःख समझ रहे हैं। हमने मनुष्य बनाया। उसमें धैर्य और सहनशीलता जैसे गुण दिए जो उसको अन्य जीवों से पृथक बनाए, पर आज लगा कि मनुष्यों के बारे में जितनी बातें आपने बताई मनुष्य उससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली और स्वार्थी बन चुका है। आज जो मनुष्य की हालत है उसमें जानवरों से बराबरी भी जानवरों का ही अपमान है।’ सभी देव एक साथ बोले।

फिर कुछ रुककर…विष्णु जी बोले, ‘तुमलोगों को आत्महत्या करने की कोई जरूरत नहीं। हम स्वयं शहर में जाकर मनुष्य को समझाने का प्रयास करेंगे। हमारी बात मनुष्य नहीं टाल सकते। आखिरकार उन्हें ईश्वर पर भरोसा है…वे हमें मानते हैं।’

सभी जानवरों को समझा-बुझा कर विष्णु जी ने प्रस्ताव रखा। वे और नारद जी मृत्युलोक का भ्रमण कर अपनी रिपोर्ट शीघ्र ही देव सभा के पटल पर रखेंगे, सभी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया और विष्णु जी, नारद जी सहित भ्रमण पर चल दिए और बाकी देवता स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गए।

अभी कुछ दूर ही निकले थे एक जगह तंबू लगा देख नारद जी ने इशारा किया, ‘प्रभु वहाँ देखिए एक साथ हज़ारों मनुष्य दिख रहे हैं। हम वहाँ चलकर मनुष्यों को दर्शन देकर समझाने का प्रयास करते हैं।’
‘हाँ-हाँ चलो’, वे बोले।
वहाँ जाकर पता लगा कि एक नेता जी की सभा चल रही थी। पब्लिक उनकी जय जयकार कर रही थी। प्रभु ने नारद जी से पूछा, ‘देवर्षि ये कौन हैं और सब इनकी जय जयकार क्यों कर रहे हैं?’

‘आप रुकिए प्रभु हम पता करके आते हैं।’ कहकर नारद जी कहीं चले गए।

थोड़ी देर बाद नारद जी समस्त जानकारी के साथ प्रभु के सामने हाजिर हुए, ‘प्रभु ये यहाँ के नेता हैं। ये पृथ्वी की ऐसी प्रजाति है जिसमें अकेले में सब जानवरों के गुण पाए जाते हैं। ये गिरगिट से ज्यादा रंग बदल सकता है, खटमल की तरह खून चूस सकता है, साँप की तरह जहर उगल सकते हैं, लोमड़ी जैसी चालाकी है, कुत्ते की तरह दुम हिला सकते हैं और भी बहुत से गुण हैं।’

‘क्या पब्लिक नहीं समझती…?’ भगवान ने पूछा।

‘नहीं प्रभु, पब्लिक सब जानती है। पब्लिक ने ही इसे अपना नेता चुना है, इसकी ताकत के आगे सब नतमस्तक हैं। ये भगवान की तरह हैं पृथ्वी पर।’ नारद जी ने विस्तृत जानकारी दी। सुनकर प्रभु बड़े परेशान हो उठे। उनकी खुद की समझ में नहीं आ रहा था। ऐसे इनसान को समझाने का रिस्क कैसे लें।

थोड़ी दूर चलने पर एक और पंडाल मिला…

‘क्या यहाँ भी नेता जी की सभा चल रही है?’ प्रभु ने पूछा

‘नहीं प्रभु, यहाँ तो बाबा जी के प्रवचन चल रहे हैं, ये भी नेता की तरह शक्तिशाली मनुष्य होता है, आपके नाम का इस्तेमाल कर इन्होंने माँ लक्ष्मी को बंदी बना रखा है। पृथ्वी पर इसके हज़ारों की संख्या में चेले या शिष्य होते हैं जो अपने गुरु रूपी भगवान के दानपात्रों को सदा धन से परिपूर्ण रखते हैं और इनके लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं प्रभु।’ नारद जी ने समझाया।

‘अच्छा ये संत हैं! हमें इन्हें प्रणाम करना चाहिए।’ उनकी वेशभूषा देख भगवान बोले।

‘अरे प्रभु इनके पहनावे पर न जाएँ। ये सिर्फ थोड़ी देर के लिए ही संत हैं। आप रुकिए, अभी प्रवचन खत्म होने दीजिए।’ नारद जी बोले।

‘अच्छा ठीक है हम इंतज़ार करते हैं।’

थोड़ी देर में प्रवचन खत्म हुआ और बाबा जी अपने कक्ष में चल दिए। पीछे-पीछे प्रभु और नारद जी भी पहुँचे। उस कमरे की सुख-सुविधाओं को देख प्रभु की आँखें खुली-की-खुली रह गईं, उन्हें स्वर्ग की सुविधाएँ भी कम प्रतीत होने लगीं। थोड़ी देर में बाबा सुरा और सुंदरी के साथ साक्षात इन्द्रदेव से नजर आने लगे।

‘ये हमारी बात क्या सुनेगा, ये तो अभी खुद को भगवान बता रहा था और इसके इतने अनुयायी हैं…हमें तो लगता है पृथ्वी पर अब हमारी भी जरूरत नहीं रह गई।’ उदास हो प्रभु वहाँ से बाहर निकल आए। नारद जी भी उनके पीछे-पीछे चल दिए।

वहाँ से निकल दूसरी जगह पहुँचे तो भीड़ और शोरगुल सुनाई दिया…लोग हाथों में हथियार और डंडे लिए दौड़ रहे थे…गाड़ियों में आग लगा रहे थे, एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे। ‘देवर्षि ये सब क्या है’ भगवान हैरान थे।

‘प्रभु ये दंगे हो रहे हैं।’ नारद जी ने जानकारी दी।

‘ये दंगा क्या होता है देवर्षि!’ भगवान ने हैरान हो पूछा।

‘भगवन् पृथ्वी पर अलग-अलग कारणों से ये होते रहते हैं। कभी जातिवाद तो कभी पिक्चर का विरोध, तो कभी आरक्षण की माँग, तो कभी आरक्षण का विरोध। ये सब राजनीति हैं जिनका आयोजन नेता कराते हैं और उसमें आहुति गरीब प्रजा की डालते हैं।’

‘अरे वो देखिए वो हमारी मूर्ति को तोड़ रहे हैं और उधर उस बच्चे को मार डाला।’ प्रभु व्यथित होकर चीखे, ‘चलिए यहाँ से अब इसका उपाय सभी देवताओं के साथ मिलकर ही सोचेंगे।’ कहकर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए और मनुष्य की ये दशा देख नारद जी भी दुखी मन से चल दिए।

देवलोक में प्रभु ने सभी देवताओं की सभा बुलाई और देवर्षि नारद को मृत्युलोक के भ्रमण की रिपोर्ट सुनाने का आदेश दिया।

देवर्षि ने सभा को संबोधित करते हुए अपने और प्रभु के मृत्युलोक भ्रमण का आँखों देखा हाल सुनाया फिर बोले–‘आज मनुष्य वाकई जानवर से भी बदतर हो चुका है, कुछ मनुष्य खुद को भगवान की तरह स्थापित कर प्रजा को मूर्ख बनाने में लीन हैं, नेता जाति और धर्म के नाम प्रजा को लड़वा कर अपनी प्रभुता स्थापित कर रहे हैं। चारों तरफ अराजकता का माहौल है। लगता है, मनुष्य जानवर नहीं बल्कि राक्षस जैसी हरकतों पर उतारू हैं। कलियुग अपने चरम पर है।’ कहकर नारद जी शांत और चिंतित मुद्रा में अपने आसन पर जाकर बैठ गए।

नारद जी की बातें सुन सभी देवता चिंतामग्न हो सोचने लगे, ‘अब जानवरों को आखिर समझाया क्या जाए?’

‘क्या जानवरों को मनुष्य होने का वरदान दे दिया जाए?’ अचानक नारद जी बोले।

इस बात से सभा में मानो धमाका हो गया हो। सब फिर विमर्श में उलझ गए।


Image name: Isaac van Amburgh and his Animals
Image Source: WikiArt
Artist: Edwin Henry Landseer
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