इंतज़ार

इंतज़ार

मुख्य सड़क छोड़ने के बाद जीप एक ग्रामीण सड़क की ओर मुड़ गई थी। ग्रामीण सड़क की हालत बहुत खराब थी। ऐसा प्रतीत होता था कि सड़क के बनने के बाद दुबारा कभी मरम्मत नहीं की गई थी। सड़क पर बड़े बड़े पत्थर उभर कर ऊपर आ गए थे। इस सड़क पर आकर जीप की स्पीड थोड़ी कम हो गई एवं उसमें बैठे लोग जरा निश्चिंत हो गए थे।
सड़क की दोनों ओर खेत थे। आषाढ़ का महीना था। बारिश शुरू हो चुकी थी। किसान अपने खेतों को तैयार करने में लगे थे। धान के बीज लगाने के लिए खेतों में पानी जमा किया जा रहा था। सड़क किनारे कहीं-कहीं बीजू आम के पेड़ थे, जिस पर बचे-खुचे आम को तोड़ने के लिए बच्चे ढेला चला रहे थे। थोड़ी देर के बाद ही जीप एक गाँव में प्रवेश कर गई। गाँव के सीमाने में प्रवेश करने के बाद जीप की रफ्तार धीमी हो गई। गाँव में रास्ते के किनारे घरों के सामने खूँटे से जानवर बँधे हुए थे, जो जीप की आवाज से हड़बड़ा कर खड़े हो गए एवं खूँटा छुड़ा कर भागने की कोशिश करने लगे। रमेश भी उनकी पकड़ से भागना चाहता था, पर उसे चार लोगों ने पकड़ा हुआ था।
वह एक सामान्य सा गाँव था। गाँव में थोड़ी दूर चलकर जीप एक घर के सामने रुक गई। जीप के रुकते ही घर से औरतें एवं लड़कियाँ निकल कर बाहर आ गईं। ऐसा लगता था मानो वे जीप के आने की प्रतीक्षा ही कर रही थी। रमेश को जो लोग लेकर आए थे, उन्होंने उसे जीप से उतारा एवं घर के अंदर ठेल कर औरतों के हवाले कर दिया। वे खुद बाहर लगे चापानल के पास जाकर हाथ-पैर धोकर घर के बाहर कुर्सियाँ लगा कर बैठ गए। घर के बाहर आम के दो बड़े पेड़ थे, जिसके नीचे कुर्सियाँ व खाट लगा दिए गए थे। शाम हो चली थी। घर के बुजुर्ग व गाँव के अन्य लोग भी वहाँ आकर बैठ गए। ऐसा प्रतीत होता था, मानो सभी की सहमति से यह कार्य हो रहा है।
रमेश के घर के अंदर जाते ही शादी से संबंधित विधि-विधान शुरू हो गए। ऐसा प्रतीत होता था कि पहले से ही सारी तैयारी की गई थी एवं उसके ले आने की ही प्रतीक्षा की जा रही थी। औरतों ने लगन के गीत गाने शुरू कर दिए। मड़वा गाड़ दिया गया एवं हल्दी-कलश आदि की रस्में की जाने लगी। रमेश शीघ्र ही समझ गया कि उसकी शादी करने के लिए उसका अपहरण करके लाया गया है। उसने महिलाओं को समझाने की कोशिश की कि उससे बड़े भाई की शादी चूँकि अभी बाकी है, इसलिए उसकी शादी नहीं हो सकती है। जिस पर एक कम उम्र की महिला ने हँस कर कहा कि आप अपनी पत्नी के साथ सोएँगे, आपके भैया अपनी पत्नी के साथ, ये किस किताब में लिखा है कि पहले बड़े भाई की शादी होगी तभी छोटे भाई की। जिस पर सभी उपस्थित महिलाएँ ठठाकर हँस दीं।
रमेश की नई-नई नौकरी हुई थी एवं पहली पोस्टिंग जलालपुर में हुई थी। वह जलालपुर में ही अपने अन्य सहकर्मियों के साथ किराये पर कमरा लेकर रहता था। बैंक से वापस घर जाते समय उसका अपहरण कर लिया गया था। अपहरणकर्ताओं ने उसे खींच कर जीप में बैठा लिया था एवं जीप उसे लेकर शहर से बाहर की ओर निकल गई थी।
रमेश के अपहरण की रिपोर्ट थाने में दर्ज करा दी गई, साथ ही उसके परिवार वालों को भी इसकी सूचना दे दी गई। रमेश के परिवार में उसके माता-पिता, दो बड़े भाई एवं एक छोटी कुँवारी बहन थी।
रमेश के पिता बिनोद बाबू सचिवालय में छोटे से मुलाजिम थे एवं वहाँ से रिटायर होने के बाद जीवन का शेष समय उन्होंने अपने गाँव में सुखपूर्वक बिताने का निश्चय किया था। नौकरी के सिलसिले में ज्यादातर समय बाहर रहने के बाबजूद वे एक गँवई आदमी थे। उन्हें उनके खेत-खलिहान हमेशा बुलाते से प्रतीत होते थे। नौकरी करते हुए भी जब मौका मिलता था वे भाग कर गाँव चले आते थे। इसीलिए गाँव से बाहर उन्होंने कोई ठौर-ठिकाना भी नहीं बनाया था।
विनोद बाबू जिस समाज से आते थे वहाँ जीवन की सबसे बड़ी सफलता एक अदद सरकारी नौकरी पाना था। शादी-ब्याह के लिए सरकारी नौकरी वाले लड़कों की बहुत भारी माँग थी। अजीब विडंबना थी कि बड़े-से-बड़े वकील, ठेकेदार, व्यापारी को जहाँ कोई नहीं पूछता था, वहीं सरकारी नौकरी वाले क्लर्क की कीमत लाखों रुपये थी। हरेक बेटे के बाप की इच्छा यही होती थी कि उसका बेटा किसी तरह एक सरकारी नौकरी पा जाए। उसी तरह हरेक बेटी के बाप की इच्छा यह कि उसकी बेटी के लिए कोई सरकारी नौकरी वाला दामाद मिल जाए। दहेज के बाजार में कभी मंदी नहीं आती है।
विनोद बाबू का बड़ा लड़का दरोगा था, जिसकी शादी हो गई थी। उसकी शादी तब हो गई थी जब वह दारोगा नहीं बना था। जब वह दारोगा बन गया तो विनोद बाबू को इस बात का बड़ा अफसोस हुआ कि उसकी शादी उन्होंने पहले क्यों कर दी।
जब छोटा लड़का बैंक में क्लर्क लग गया तब तो बिनोद बाबू की समाज में इज्जत बहुत बढ़ गई थी। छोटे की नौकरी लगने के साथ ही शादी के लिए लड़की वाले बिनोद बाबू के दरवाजे का चक्कर काटने लगे थे। बढ़िया खाता-पीता एवं नौकरी वाला परिवार देखकर लड़की वाले बाप का जी ललचा जाता था। यद्यपि कि छोटे की नौकरी पहले लग गई थी पर शादी तो मँझले की ही पहले होनी थी। इसलिए बिनोद बाबू लड़की वालों को यही कहकर वापस कर देते थे।
बाद में मँझला लड़का भी दारोगा बन गया और तब तो मानो बिनोद बाबू की लॉटरी ही लग गई। सब कहते कि बिनोद बाबू बड़े सौभाग्यशाली हैं। तीनों बेटों को नौकरी मिल गई है। इससे ज्यादा एक आदमी को क्या चाहिए भला? बिनोद बाबू के द्वार पर लड़की वालों का मेला सजने लगा। आस-पास के सभी प्रतिष्ठित, कम प्रतिष्ठित, विख्यात, कुख्यात लोग अपनी बेटियों के लिए बिनोद बाबू के चौखट पर धरना देने लगे थे। बिनोद बाबू ने तय किया था कि पहले मँझले बेटे की शादी करेंगे, उससे मिलने वाले दान-दहेज में अपना कुछ जोड़कर बेटी की शादी निबटाएँगे और तब फिर आराम से छोटे बेटे की शादी करेंगे।
छोटा वाला लड़का रमेश पैर से लँगड़ाता था एवं इसी आधार पर विकलांग कोटे में उसका सिलेक्शन भी बैंक में हुआ था। लेकिन बैंक की उसकी नौकरी के कारण लड़की वाले उसके लँगड़ेपन को नजरअंदाज करने को तैयार थे।
रमेश इस बीच लगातार प्रतिरोध करता रहा। उसे जब कभी किसी रस्म हेतु ले जाने की कोशिश की जाती तो वह नए बछड़े की तरह अड़ जाता। ऊबकर महिलाओं ने बाहर बैठे पुरुषों को बुला लिया। उन्होंने आकर उसे डराया-धमकाया पर रमेश अड़ा रहा। फिर दो-चार लात-घूँसा खाने के बाद ही वहाँ से हिला। दो-चार बार पीटने के उपरांत उसने तय कर लिया कि अब जो हो रहा है, उसे हो जाने दे और बाद में जो होगा देखा जाएगा। इसी बीच एक लड़का आकर उसके कनपटी में पिस्तौल सटा कर उसे जान से मारने की धमकी भी दे गया।
सुबह होते-होते शादी की रस्म समाप्त हो गई और बस आशीर्वादी होना बचा रह गया। आशीर्वादी के लिए वर पक्ष के लोग आते हैं जो नव युगल को आगामी जीवन हेतु आशीष देते हैं। लेकिन यहाँ तो वर पक्ष के लोग थे नहीं इसलिए फिलहाल के लिए इस कार्यक्रम को स्थगित रखा गया।
सुबह में जब सब कुछ शांत हो गया तो लड़की का बाप रमेश के पास आया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला–‘जो कुछ हुआ दामाद जी उसको भूल कर क्षमा कर दीजिए और मेरी बेटी को स्वीकार कीजिए।’
रमेश का मन पहले से कुपित था। उसके जी में आया कि उठकर दो झापड़ खींच दे। लेकिन अभी तक उसके मन पर पिछली रात हुई पिटाई और पिस्तौल का खौफ कायम था। वह चुप रहा लेकिन भीतर-ही-भीतर वह सुलग रहा था।
लड़की का बाप चुपचाप हाथ जोड़े खड़ा रहा। वह देखने में भोला-भाला एवं बेचारा सा लग रहा था। रमेश को उस पर दया भी आई। लेकिन फिर यह सोचकर कि कल रात जब उसकी पिटाई हो रही थी तब तो यह चुपचाप तमाशा देख रहा था, वह चुप रहा और निगाहें दूसरी ओर फेर ली।
‘दामाद जी हम आपके पैर पकड़ते हैं, क्षमा कर दीजिए।’ लड़की के बाप ने उसके पैर पकड़ लिए थे।
‘आप जाइए यहाँ से। ये सब नौटंकी मत कीजिए। ऐसा करने के पहले आपने कुछ नहीं सोचा?’ रमेश ने कुपित होते हुए कहा।
‘हम क्या करते बेटा, हम तो लड़की के बाप हैं, हमें तो लड़की के भार से उऋण होना है। हम तिलक-दहेज का इतना पैसा कहाँ से लाते?’ लड़की के बाप ने रमेश से गिड़गिड़ाते हुए कहा।
‘दहेज का पैसा? मेरे पिता जी ने आपसे दहेज माँगी थी? जब अभी मेरी शादी की बात ही नहीं थी तो दहेज की बात कहाँ से आ गई? अभी मेरे से बड़े भाई की शादी होनी है, मेरी बहन की शादी होनी है फिर मेरी बात होती तो दहेज की बात कहाँ से आ गई?’ रमेश ने उखड़ते हुए कहा।
‘नहीं, आपके पिता जी ने नहीं माँगी थी, लेकिन वे क्या बिना दहेज के कर लेते?’ लड़की के बाप ने कहा।
‘कर लेते या नहीं कर लेते लेकिन जब दहेज की बात ही नहीं हुई तो आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?’ रमेश ने कहा
‘ऐसा ही समाज का आज का नियम है बाबू, बिना दहेज के कौन शादी कर रहा है? उस पर भी नौकरी वाले लड़के की? आजकल तो जिसका बेटा सिपाही है वो भी दस लाख माँग रहा है। हमको कोई शौक थोड़े ही है अपनी बेटी की इस तरह से शादी करने की, लेकिन क्या करें हम अपनी बेटी को दहेज के अभाव में घर में बैठा कर तो नहीं रह सकते।’ लड़की के बाप ने समझाने की कोशिश की।
‘तो मैं ही क्यों, किसी और से करते अपनी बेटी की शादी। इतनी बड़ी दुनिया में मैं ही मिला था आपको पकड़ के शादी करने के लिए।’ रमेश ने खिसियाकर कहा।
‘जिससे भी करते उसको तो ऐसा ही लगता न बाबू। कौन खुशी-खुशी पकड़उआ शादी के लिए तैयार होता है? अगर खुशी से तैयार ही होता तो फिर पकड़ कर करने की जरूरत ही क्या पड़ती? आप तो देखे ही होंगे कि हमारी लड़की बहुत खूबसूरत है। आपकी घर-गृहस्थी अच्छे से बसाएगी। घर-परिवार में सबकी सेवा करेगी और सबको खुश रखेगी। आप घाटे में नहीं रहिएगा बाबू।’ यह कहते हुए लड़की के बाप ने फिर से हाथ जोड़ दिए और अपनी जेब से निकालकर एक हज़ार एक रुपये रमेश को आशीर्वाद स्वरूप देने लगा।
रमेश ने रुपये लेने से मना कर दिया, जिस पर लड़की के बाप ने उसके पॉकेट में रुपये रख देने की कोशिश की, जिसे निकालकर रमेश ने दूर फेंक दिया।
रमेश रातभर का जागा हुआ था, उसे बहुत जोरों की नींद आ रही थी। इस बीच अनेक तरह की सालियाँ–सगी, चचेरी, ममेरी, फुफेरी उसके पास आकर उससे चुहल करने की कोशिश करती रहीं, पर वह निर्विकार पत्थर की मूरत बना बैठा रहा। सबके जाते वह वहीं पड़ी एक खटिया पर लुढ़क गया और गहरी नींद में चला गया। जब उसकी नींद खुली तब शाम हो चुकी थी।
लड़की की माँ ने जब उसे जागा हुआ देखा तो उसके लिए नाश्ता ले आई।
‘आप सो रहे थे इसलिए हमने उठाना उचित नहीं समझा, आपने खाना भी नहीं खाया। कुछ जलपान ग्रहण कर लीजिए।’ उसने कहा।
‘नहीं मुझे कुछ नहीं खाना है। मुझे तंग मत कीजिए।’ रमेश ने मुँह तीता करते हुए कहा।
रात घिर आई थी। सालियाँ फिर से रमेश के पास आकर उससे चुहल करने की कोशिश करने लगी थी। रौशनी के लिए गैस बत्ती का इंतजाम था जिसे जला दिया गया था। घर में आए हुए मेहमान इधर-उधर जहाँ जगह मिल रही थी पसरे हुए थे। रात में सबने भोजन किया पर रमेश का अनशन जारी रहा।
सुनीता एक औसत कद की इक्कीस वर्षीया सुंदर सी लड़की थी। वह पढ़ने-लिखने में रुचि लेती थी। गाँव के हाई स्कूल से उसने दसवीं तक की पढ़ाई की थी। उसके बाद उसने प्राइवेट से फॉर्म भरकर इंटर और बी.ए. की डिग्री भी हासिल की थी। उसके पिता रामचरित्तर की माली हालत ऐसी कभी नहीं रही कि वे सुनीता के लिए किताब एवं कॉपियों का प्रबंध कर सके। ऐसे में उसके चाचा रामलखन ने उसकी मदद की। वही उसकी कॉलेज की फीस एवं किताबों आदि का खर्च उठाते रहे। इस तरह रामलखन के अहसानों के तले सुनीता एवं रामचरित्तर दोनों दबे हुए थे। जब सुनीता की शादी के लिए रामलखन ने नौकरी वाले पकड़उआ लड़के के इंतजाम की बात कही तो रामचरित्तर कुछ बोल नहीं पाए।
दरअसल इसके पीछे रामलखन का अपना स्वार्थ था। रामलखन की बेटी प्रिया, सुनीता से छोटी थी। उसने अपनी बेटी के लिए एक अच्छा नौकरी वाला लड़का देख रखा था। परेशानी यह थी कि बड़ी के कुँवारी रहते छोटी की शादी करने से उसे जगहँसाई का डर था। इसलिए वह किसी तरह सुनीता की शादी निबटा देना चाहता था।
सुनीता की इच्छा थी कि वह पढ़-लिख कर शिक्षिका बने। स्नातक के उपरांत उसने बीएड करने की योजना बनाई थी। लेकिन इससे पहले कि सुनीता अपने मन की बात कह पाती रामलखन उसकी शादी का जुगाड़ भिड़ा दिए।
रात में सालियों ने मिलकर रमेश को एक कमरे में ठेल-ठाल कर पहुँचा दिया और पीछे से सुनीता को भी उसी कमरे में भेज दिया गया।
इस तरह के पकड़उआ शादियों में यह माना जाता है कि लड़का शुरू में गुस्सा करता है परंतु जब लड़की को देखता है तो उसका गुस्सा धीरे-धीरे भाँप की तरह उड़ जाता है। लड़की लड़के का दिल जीत लेती है और लड़का फिर लड़की के प्यार में अपने घर वालों से भी विद्रोह कर देता है। ऐसे कई दृष्टांत भी यहाँ-वहाँ मौजूद थे।
कमरे में एक पलंग लगा हुआ था, जिस पर बिस्तर बिछा था। बिस्तर के ऊपर बिछे चादर पर खूबसूरत कढ़ाई का काम किया हुआ था। तकिया पर भी धागे की कढ़ाई से स्वीट ड्रीम और लव लिखा हुआ था। ऐसा लगता था मानो इसी लड़की ने अपने सुहाग रात के लिए अपने हाथों से यह सब बनाया था। कमरे में पलंग के सिवा दूसरा कोई फर्नीचर नहीं था। रमेश कमरे के भीतर जाते ही पलंग पर लेट गया। दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया था। लड़की चुपचाप पलंग से थोड़ी दूर दरवाजे के पास ही खड़ी थी। वह चुपचाप कुछ देर वहीं खड़ी रही। रमेश ने उसकी ओर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी एवं चुपचाप पलंग पर लेटा रहा मानो वह गहरी नींद में हो। कमरे के अंदर लैंप की हलकी रौशनी फैल रही थी।
लड़की कुछ देर वहीं खड़ी रहने के बाद पलंग के पास आ गई। थोड़ी देर बाद रमेश ने अपने चेहरे पर किसी का स्पर्श महसूस किया वह हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसने आँखें खोली तो देखा कि लड़की उसके पलंग के पास खड़ी है। उसने नजरें नीची झुका रखी थी और अँगूठे से जमीन को कुरेदने की कोशिश कर रही थी। मानो वह एक अनजान व्यक्ति के सामने शर्म से गड़ी जा रही हो। उसकी आँखें नीचे झुकी हुई थीं।
रमेश ने देखा कि लड़की निहायत ही खूबसूरत थी। इस रूप लावण्य का जादू रमेश पर ऐसा चला कि उसे लगा वह सब कुछ भूल कर लड़की को अपनी बाँहों में भर ले और उसके अधरों पर चुंबनों की बरसात कर दे।
लड़के का अपहरण करके शादी करने वाले शायद इस बात से भली-भाँति परिचित थे कि जब लड़का लड़की करीब होंगे तो लड़का मोम की तरह पिघल जाएगा एवं लड़की पर लट्टू हो जाएगा।
किसी तरह रमेश ने अपने आपको सम्हाला। लड़की चुपचाप खड़ी रही। रमेश ने एक बार फिर से उसकी ओर देखा। उसे लगा अब उसके लिए खुद को रोक पाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन कल की पिटाई और पिस्तौल के भय से वह सिहर उठा। उसे लगा कि आज अगर वह इस लड़की के साथ कुछ कर देगा तो कल इस जंजाल से निकल पाना मुश्किल हो जाएगा। उसने मन-ही-मन पहले से तय कर रखा था कि कुछ भी हो जाए इन लोगों को इनके किए की सजा देकर रहेगा। वह किसी भी सूरत में लड़की को अपने साथ नहीं रखेगा।
कुछ देर जब यूँ ही बीत गया तो लड़की ने धीमे स्वर में उससे पूछा, ‘नाराज हैं?’
रमेश चुप रहा।
‘इसमें मेरी क्या गलती है?’ लड़की ने फिर कहा।
‘नहीं, सारी गलती तो मेरी है, मैं तुम्हें उठा कर यहाँ लेकर आया। मैंने तुम्हारा अपहरण किया है।’ रमेश ने चीखते हुए कहा। उसके सामने अपहरण की वारदात से लेकर अभी तक का सारा घटनाक्रम चित्रपटल की भाँति घूम गया।
‘नहीं, आपकी कोई गलती नहीं है। गलती तो मेरे परिवार वालों की है। लेकिन मेरी तो कोई गलती नहीं है न?’ लड़की ने कहा।
‘किसी-न-किसी से तो आपको शादी करनी ही थी, मेरी ओर देखिए मुझमें क्या कमी है? अपने परिवार वालों की तरफ से मैं आपसे माफी माँगती हूँ।’ उसने कहा और रमेश के पैर पकड़ लिए।
लड़की वहीं बैठ कर रोने लगी, ‘अब तो कुछ नहीं हो सकता है। अब तो आप मेरे पति और मैं आपकी धर्मपत्नी हूँ। इस जन्म में तो आपको इस देह से ही काम चलाना पड़ेगा।’ लड़की ने सुबकते हुए कहा।
‘काहे की धर्मपत्नी। मैंने पत्नी कभी माना ही नहीं है आपको। ऐसे जबरदस्ती कोई किसी की पत्नी बनती है क्या।’ रमेश ने कहा।
‘तो क्या करते, मेरे पिता जी इतना दहेज कहाँ से लाते? जहाँ जाते थे दस लाख, बीस लाख दहेज माँगता था ऊपर से सोने के जेवर, गाड़ी अलग से। क्या करते मेरे पिता जी? बेटी को जिंदगी भर घर में बिठाकर तो नहीं रख सकते थे।’ लड़की ने कहा।
‘तो उसका ठेका मैंने लिया था क्या? मेरे पिता जी ने तो दहेज नहीं माँगा था, जब मेरी अभी शादी ही नहीं होनी थी तो दहेज का प्रश्न कहाँ से आया? जिसने दहेज माँगा था उसको उठाना चाहिए था। मुझे क्यों?।’ रमेश बहस करने लगा।
‘आपकी जब शादी तय होती तो आपके पिता जी बिना दहेज के शादी कर देते क्या?’ लड़की भी अब खुलकर अपना पक्ष रखने लगी थी।
‘तब क्या होता ये कौन जनता है, लेकिन इस तरह किसी के साथ जबरदस्ती किया जा सकता है क्या?’ रमेश ने कहा। हालाँकि उसे लग रहा था कि उसकी दलील कहीं-न-कहीं कमजोर पड़ रही है। अभी मँझले भाई की शादी के लिए पिता जी बहुत बड़ा मुँह खोल रहे थे और अपनी बहन की शादी के लिए भी जब वे लोग जहाँ कहीं जा रह थे तो लड़के वाले अनाप -शनाप दहेज माँग रहे थे। दहेज तो समाज की कटु सच्चाई है। इसे कैसे झुठलाया जा सकता है? उसने सोचा। लेकिन इसका यह भी तो मतलब नहीं कि उसके साथ जबरदस्ती करके, उसका अपहरण करके, उसके साथ मारपीट करके उसकी शादी किसी लड़की के साथ कर दी जाए। उसने ऐसा सोच कर अपने आपको आश्वस्त किया।
‘ठीक है जो हुआ, वह बहुत गलत हुआ, उसके लिए मैं आपसे माफी माँगती हूँ। अब सब भूलकर मुझे स्वीकार कीजिए। आपको मैंने अब पति मान लिया है तो अब आपके सिवा दूसरा कोई नहीं है इस दुनिया में। अब मेरे माँ, बाप, भाई, बहन से भी बढ़कर आप ही हैं। मैं अब आपको अपना सर्वस्व सौंपती हूँ। जैसे नदी की पूर्णता समुद्र में मिलने में है वैसे ही मेरी पूर्णता आपके साथ है। आपके साथ आपके दु:ख-सुख में मैं सदा प्राणप्रण से खड़ी रहूँगी। जिस तरह सरोवर के जल में खिलने वाला कमल, सरोवर की सुंदरता को बढ़ा देता है, वैसे ही मैं भी आपके जीवन के सुख को बढ़ाने के प्रयत्न करूँगी।’ लड़की ने कहा और फिर उसके पैर पकड़ लिए। रमेश पैर खिंच कर खिसक कर पलंग के दूसरे कोने में चला गया।
रमेश अपना ध्यान दूसरी ओर करने की कोशिश करते हुए पलंग पर लेट गया। लड़की चुपचाप बैठी रही। इसी बीच रमेश को कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला। उसकी नींद सुबह में शोरगुल से खुली। उसकी पलंग पर चारों ओर लड़कियाँ उसे घेर कर बैठी हुई थीं और उसे उठा रही थीं। वह हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसे रात की बात याद आई और वह घबरा गया। फिर उसने याद किया कि उसने तो गलत कुछ किया नहीं था। इस बात ने उसे तसल्ली दी और वह सीधा होकर बैठ गया।
उसकी सालियाँ उससे रात के बाबत पूछने लगी। उन्होंने पूछा कि उसकी दीदी उसे कैसी लगी, रातभर सोये या जागते रहे, कितने गोल हुए आदि आदि? रमेश चुप रहा। फिर उसे लगा कि उसका चुप रहना गलत संदेश दे सकता है तो उसने जोर से कहा कि रात में ऐसा कुछ नहीं हुआ जैसा आपलोग कह रही हैं। मैं अकेले यहाँ सोया हुआ था।
धीरे-धीरे घर में यह बात फैल गई कि रात में कुछ नहीं हुआ। लड़की की भाभियाँ उसे उलाहने देते हुए कहने लगी कि कैसी लड़की है जो रातभर में जमा हुआ घी नहीं पिघला सकी। लड़की के लिए यह दिन बहुत यातनाभरा रहा। वह जिंदगी के एक ऐसे दौर से गुजर रही थी जहाँ उसके अपने अब अपने नहीं रहे थे और जिसे उसका अपना होना था वह उसे अपनाने के लिए तैयार नहीं था। वह रोने लगी थी। बीच-बीच में उसकी सिसकियाँ जोर पकड़ लेती तो रमेश का कलेजा भी फटने लगता। लेकिन वह किसी तरह अपने आपको मजबूत किए रहा। दिन में रमेश को समझाने-बुझाने का दौर चलता रहा। कभी सास, कभी फुआ सास, कभी सरहज तो कभी सालियाँ आकर समझाने की कोशिश करती रहीं कि इससे बेहतर लड़की उसे दीया लेकर ढूँढ़ने से भी नहीं मिलने वाली है।
लेकिन लड़की का चाचा अपनी घृष्टता पर कायम रहा। उसने कहा कि नौटंकी कर रहा है। छोड़ दो अपने आप ठीक हो जाएगा। जब ब्याह हो गया है तो अब कहाँ जइहें बच्चू। ‘होल बिआह मोर करवा की औ धिया छोड़ के लेबा की’ उसने व्यंग्यात्मक हँसी हँसते हुए कहा। रमेश के जी में आया कि उठकर उसके मुँह पर एक जोरदार तमाचा जड़ दे। लेकिन कल की पिटाई और पिस्तौल वाली बात उसे याद थी।
इसी कशमकश में किसी तरह दिन गुजरा। शाम घिर आई थी रौशनी के लिए गैस बत्तियाँ जला दी गई थीं। औरतें खाना बनाने में मशगुल थीं एवं मर्द लोग आपस में बात करने में। अचानक से घर में कोहराम मच गया। घर के बाहर बैठे मर्द भाग कर अंदर आने लगे एवं घर का दरवाजा बंद कर दिया गया। रमेश को खींचकर एक कमरे में ले जाया गया एवं कमरा बाहर से बंद कर दिया गया।
बाहर पुलिस वाले जोर-जोर से दरवाजा पीट रहे थे। रमेश का भाई पुलिस लेकर आया था। पुलिस वाले जोर-जोर से आवाज लगाकर दरवाजा खोलने के लिए कह रहे थे। लेकिन कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था। इस बीच लड़की और उसकी माँ जोर-जोर से रोने लगी एवं लड़की के चाचा को कोसते हुए कहने लगी कि सब इहे मुँहझौसा के चलते होल है।
रमेश को इतने में समझ आ गया था कि उसे बचाने के लिए पुलिस आ गई है। उसका हौसला बढ़ गया। वह कमरे के अंदर से दरवाजा पीटने लगा। दरवाजा खुलता न देख पुलिस वाले बगल के घर की छत पर चढ़कर लड़की के घर में प्रवेश कर गए। रमेश अंदर से बेतहाशा दरवाजा पीट रहा था। एक पुलिस वाले ने रमेश के कमरे का दरवाजा खोलकर रमेश को बाहर निकाला। लड़की और उसकी माँ की रुलाई से आसमान का कलेजा फटने लगा था। रमेश को लगा अब अगर वहाँ रहा तो उसका सर फट जाएगा।
उसने अपने भाई से कहा, ‘भैया जल्दी चलो अब यहाँ से।’ इसी बीच लड़की का चाचा पुलिस वाले को और रमेश के भाई को कुछ समझाने की चेष्टा करने लगा। रमेश ने उसे अपने पास बुलाया और एक जोरदार तमाचा मारा।
रमेश के वापस अपने घर चले जाने के बाद लड़की का बाप अपने कुछ नाते-रिश्तेदारों के साथ रमेश के पिता जी से मिलने उसके गाँव पहुँचा। लेकिन रमेश के पिता जी तो पहले से आग हो रहे थे। उन्होंने आव देखा न ताव लाठी लेकर सबको दौड़ा दिया। सभी लोग बेचारे जान बचाकर गिरते-पड़ते भागे।
‘क्या सोचा था रे साला…जिसका दू गो भाई दारोगा है, लड़का खुद बैंक में काम करता है, उसको तुम पकड़ के शादी कर लेगा और हम तुम्हारी लड़की को रख लेंगे। भागो साला यहाँ से। दुबारा आया तो टाँग तोड़ देंगे।’ रमेश के पिता जी बुरी तरह से गुस्से में काँप रहे थे।
लड़की का बाप सीधा-सादा आदमी था। एक बार भाग कर गया तो दुबारा नहीं आया। उसका चाचा इधर-उधर से रमेश के पिता जी पर दबाव बनाने की कोशिश करता रहा। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में हारकर बैठ गया। रमेश के अपहरण का जो केस बना था वह चलता रहा। लड़की वालों की तरफ से भी दहेज उत्पीड़न का एक फर्जी केस लगा दिया गया। रमेश ने कोर्ट से शादी करने की अनुमति संबंधी एक याचिका भी लगा दी। दोनों केस साथ-साथ चलते रहे। जब तक केस चलता रहा लड़की की उम्मीद जगी रही। रमेश ने भी उस दौरान शादी नहीं की। केस लंबा चला एवं रमेश की शादी की उम्र गुजरने लगी। इस बीच रमेश को कई लोगों ने समझाया कि वह लड़की को ले आए, इस तरह क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहा है। पर रमेश नहीं माना। इस बीच रमेश भी अत्यंत दुखी रहने लगा। उसके हमउम्र लोगों के बच्चे बड़े हो रहे थे परंतु वह अभी तक यूँ ही बैठा था।
किसी भी अन्य लड़की की तरह सुनीता के मन में भी अनेक तरह की इच्छाएँ पलती रही थीं। सुनीता ने भी चाहा था कि कोई हो जिसे वह बेपनाह मुहब्बत करे। लेकिन गाँव में उसे आज तक ऐसा कोई नहीं मिला। गाँव में तो सभी भाई, चाचा ही थे और गाँव के बाहर वह कभी गई नहीं। जब फेरे हो रहे थे तब उसने सोचा कि वह अपने पति से बहुत प्यार करेगी। उसे हमेशा खुश रखने की कोशिश करेगी एवं उसकी खुशी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देगी। जीवन के इस उहापोह में उसका पढ़ने-लिखने से भी मन उचाट हो गया। उसकी सभी सहेलियाँ अपने-अपने विवाहोपरांत ससुराल जाकर बस चुकी थी। सभी के आँगन में दो-एक फूल खिल कर उनकी जीवन बगिया को रंगीन बना रहे थे। पर सुनीता? उसके नसीब में तो अब बस प्रतीक्षा थी। एक अंतहीन प्रतीक्षा, उदासी, बेबसी और बेचारगी से भरी हुई। ‘क्या रमेश बाबू वापस आएँगे? क्या रमेश बाबू उसे स्वीकारेंगे? क्या कानून उसके पक्ष में खड़ा होगा?’
सुनीता इंतज़ार करती रही। उसके पास तो इंतज़ार के सिवा कोई विकल्प भी नहीं था। एक बार जिसे पति मान चुकी, उसे छोड़कर कहाँ जाए? अगर कहीं जाना होता तो पहले ही नहीं चली गई होती? धीरे-धीरे घर वालों ने भी उसके संबंध में बात करना छोड़ दिया। वह घर में यूँ रह रही थी मानो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं हो। यद्यपि माँ-बाप अभी भी चिंतित रहते थे। घर में अकेली रहती और अपनी किस्मत पर अफसोस करती रहती। उसके जीवन से बसंत स्थायी रूप से गायब हो चुका था। वह कभी-कभी सोचती, ‘उसने इस तरह के पकड़उआ शादी का विरोध क्यों नहीं किया। लेकिन क्या उसके विरोध से घर वाले मान जाते? आखिर उसकी शादी किससे होती?’ इन्हीं सवालों के बादल उसके मन में घुमड़ते रहते और आँखों में आकर बरस जाते। उसकी हालत आम के ऐसे पौधे की तरह हो गई थी जिसे मैदान से उखाड़कर दूर कहीं रेगिस्तानी इलाके में रोप दिया गया हो और जहाँ पानी के बिना वह कुम्हला कर जल रहा हो। उसका दर्द उसकी माँ समझती थी पर वह क्या करती सिवा अपनी किस्मत और लड़की के चाचा को कोसने के। इसी दुःख में कुढ़ते हुए एक दिन उसकी माँ स्वर्ग सिधार गई। अब तो उसका दर्द बाँटने वाला भी कोई नहीं रहा। कुछ नदियाँ ऐसी भी होती हैं जिनकी मंजिल समुद्र नहीं होती। वह कभी-कभी सोचती कि कहीं जाकर अपनी जान दे दें। इस भयप्रद अंतहीन प्रतीक्षा से बेहतर है कि इस जीवन से मुक्ति पा ली जाए। लेकिन फिर मन के किसी कोने में आशा की एक किरण दिखलाई देती कि क्या पता रमेश बाबू का मन बदल ही जाए, आखिर उन्होंने अभी तक दूसरी शादी भी तो नहीं की है।
सुनीता को कभी-कभी लगता कि रमेश बाबू घर के दरवाजे पर खड़े हैं। वह चौंक कर उठ खड़ी होती और माथे पर पल्लू डालते हुए दरवाजे की ओर दौड़ पड़ती। पर वहाँ नितांत शून्य के कुछ और नहीं होता। परिवर्तन प्रकृति का स्थायी नियम है परंतु सुनीता के हिस्से से परिवर्तन स्थायी रूप से अदृश्य हो गया था। उसका जीवन जड़वत हो गया था, जो आगे बढ़ ही नहीं रहा था। हवा का चलना, फूलों का खिलना, ऋतुओं का बदलना सब मृग मरीचिका से हो गए थे। शादी वाली घटना के दिन से वह आज तक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई थी?
‘रमेश बाबू क्या मेरे बारे में कभी कुछ नहीं सोचते होंगे? क्या उनके दिल में मेरे लिए कोई जगह नहीं है? क्या वे कभी नहीं आएँगे? सुनीता यह सब सोचती और उदास हो जाती। सुनीता समझ नहीं पाती कि कोई इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है?
अंत में कोर्ट का फैसला रमेश के पक्ष में आया। कोर्ट ने रमेश को शादी की अनुमति दे दी एवं लड़की वालों को सजा सुना दी?


Image name: Ville d_Avray the Heights Peasants Working in a Field
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Artist: Camille Corot
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नीरज नीर द्वारा भी