नहीं थी कविता वह
- 1 April, 2025
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- 1 April, 2025
नहीं थी कविता वह
उस रात जब मुझे
काली-सी सड़क और काले साँप में
फ़र्क़ को ठीक-ठीक समझाते तथ्यों को
अलग-अलग करने की चेष्टा में लगा देख
कर लिया गया गिरफ्तार
उस वक्त शहर के तमाम लोग
अमृतमंथन की कथा सुनते-सुनते
ले रहे थे उबासियाँ
नींद नहीं दंश का षड्यंत्र यह
फुफकारें जिस तरफ़
मौसम की परिभाषा में बयारें समझी जाती रही
जिस तरफ़ अमृत कलश पाए जाने के ब्यौरे पेश
हलाहल के लिए प्रयुक्त शब्दों के भावार्थ
उसी तरफ़ से जाने मैंने
साँप की सरसराहट जैसी राहों पर
कैसे लड़खड़ा गिर पड़े वे लोग
जो दुश्मनों की शक्लों को
शिनाख्त कर लेने का
चिंतन समझने की कोशिश में रहे
सड़क जिस मुक़ाम पर रंगीन बतायी गई
दरअसल वह केंचुली में छिपी दुनिया का
स्याह चमकता डरावना रंग निकला
और धोखा यहाँ तक,
कसैले धुँधलकों की किताब में
चिपका दिए गए इन्द्रधनुष
और मैं लगातार इस फ़िराक़ में
बादलों को फाड़ काग़ज़ की एक नाव बना
इस बार की बारिश में हो जाऊँ फ़रार
लेकिन चश्मदीद गवाह के रूप में
मेरी ही आँखें कटघरे में
अफ़सोस कि, मुझे कहना पड़ गया
वे सारे तथ्य झूठे थे जो सड़क को
साँप की तरह सिद्ध करने के वास्ते
जुटाए मैंने।