निशानी

निशानी

आज पिता मेरे पास नहीं हैं तो
उनकी बहुत सी चीज़ें
ठोस रूप में हमारे साथ साँस लेती हैं
मुझे चीज़ों में मन नहीं लगता
चीज़ों के बीच पिता को खोजने लगता हूँ मैं

उनकी आवाज़ सुनने का मन होता है
वह कहीं सुरक्षित नहीं है कि
बजा दिया जाए
जब मन करे
जैसे पुकार लिया करते थे
वे कई बार मेरा नाम

उनकी हँसी पहले ख़ूब गूँजती थी
अब लेकिन कम हो गई है उसकी छाप

उनके स्पर्श की गंध भी धीरे-धीरे उड़ गई
जैसे कोई फूल सुबह खिल कर नया रहता है
चार दिन बाद वही इतना सूख जाता है कि
मानने का मन नहीं होता ये वही फूल था

किसी का होना ही उसकी छाप है
जब तक वह रहता है
उसकी छाप चमकती है
उसके जाने के बाद उड़ने
लगती है उसकी रंगत

जैसे धूप में लगातार सूखने के बाद
नई कमीज़ भी जर्जर हो जाती है।