जीवित है प्रेम

जीवित है प्रेम

मैं नहीं मानता
कि मनुष्य
भूल चुके हैं प्रेम करना

उसी तरह
जिस तरह
मन नहीं मानता
हिचकियों को एक
नैसर्गिक क्रिया,
वह रखता है विश्वास
कि कोई आज भी
कर रहा है उसे याद।

उसी तरह
जिस तरह
समाज का एक बड़ा वर्ग
नहीं मानता कि
ईश्वर नहीं है,
वह रखता है विश्वास
कि पत्थर की
एक मूर्ति या मज़ार
कर देंगी उन्हें मुक्त
उनकी हर पीड़ा से।

उसी तरह
मुझे विश्वास है कि
प्रेम भी रहेगा समाज में जीवित
जब तक
मूर्ति या मज़ारों के पास है
ईश्वर का दर्जा
और हिचकियाँ नहीं कहलातीं
नैसर्गिक क्रियाएँ।