लेबर चौराहा
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- 1 April, 2025
लेबर चौराहा
कठरे में सूरज ढोकर लाते हुए
गमछे में कन्नी, खुरपी, छेनी, हथौड़ी बाँधे हुए
रूखे-कटे हाथों से समय को धकेलते हुए
पुलिस चौकी और लाल चौक के ठीक बीच
जहाँ रोज़ी के चार रास्ते खुलते हैं
और कई बंद होते हैं
जहाँ छतनाग से, अंदावा से, रामनाथपुर से
जहाँ मुस्तरी या कुजाम से
मुंगेर या आसाम से
पूँजीवाद की आँत में अपनी ज़मीनों को पचता देख
अगली सुबह
ग़रीबी की गद्दी पर बैठ विकास की टुटही साईकिल पे सवार
कई-कई मज़दूर आते हैं
वहीं है लेबर चौराहा
कई शहरों में कई-कई लेबर चौराहे हैं
अल्लापुर या रामबाग़ में
बनारस या कानपुर में
दिल्ली या अमृतसर में
हर जगह जैसे सिविल लाइन्स है, जैसे घंटाघर है, जैसे चौक है
वैसे ही लेबर चौराहा है
इन जगहों से बहुत अलग
लेबर चौराहा ही है
जिसकी हथेली पे पूरा शहर टिका है
आँखों से अभिजातपने की पट्टी हटाकर देखोगे तब समझोगे कि
दुनिया के कोने-कोने में जहाँ-जहाँ मज़दूर हैं
वहाँ-वहाँ भी होता ही है लेबर चौराहा
फिर भी कितनी अजीब बात है
जिन रेलों से मज़दूर आते हैं
उनमें उनके डिब्बे सबसे कम हैं
जिन शहरों को बसाते हैं
उनमें उनके घर नगण्य हैं
जिन खेतों में अन्न उगाते हैं
वहाँ उनकी भूख सबसे कम है
खदानों में, मिलों में, स्कूलों में,
बाज़ारों में, अस्पतालों में
उनके हिस्से न के बराबर हैं
फिर भी वे आते हैं अपना गाँव-टोला छीन लिए जाने के बाद
जीने के लिए
गंदे पानी, गंदी हवा और गंदी व्यवस्था में
बचे रहने के लिए
उसी विकास की टुटही साईकिल पे सवार उन्हें जब भी लेबर चौराहे की तरफ़ आता
हुआ देखो
उन्हें पहचानो
वे हमारे पड़ोस से ही आए हैं
उनसे पूछो–‘का हाल बा’
वे जवाब ज़रूर देंगे
इज़राइल या फ़िलिस्तीन में
भारत या ब्राज़ील में
जहाँ दुनिया ढहेगी
पहली ईंट रखने वे ही आएँगे
लेकिन सोचने वाली बात ये है
कि हर बार विकास की टुटही साईकिल पे सवार
गमछे में कन्नी, खुरपी, छेनी, हथौड़ी बाँधे हुए
रुखे-कटे हाथों से समय को धकेलते हुए
पुलिस चौकी और लाल चौक के ठीक बीच
क्या वे इसी तरह आएँगे…?