बटोही

बटोही

एक बटोही दूर देश का
निर्जन पथ पर शून्य समेटे
संध्या वेला गोधूली के
चला जा रहा दिशा शून्य हो
अनजाने में,

एक अकेला पक्षी-सा वह
क्षितिज छोर के शून्य लोक में
आश्रय पा लेने जीवन का
उम्मीदों के ज़द में खोकर,

पर अंदर में पीड़ा का
एक स्थित नद भी
उबल रहा है,
जहाँ वजूद का कोई घट भी
नहीं बचा है ख़ाली होने,

पतझड़ की नंगी डाली के
ख़ालीपन में
कोई हवा नहीं रुकती है
गुप-चुप कुछ बातें कर लेने,
न ज़मीन का कोई टुकड़ा
रोक रहा है जीवन देने
नहीं गमन के शून्य लोक में
कोई है, जो जीवन दे दे

दूर देश का एक बटोही
चला जा रहा जीवन ढोते।


Image name: Wanderer
Image Source: WikiArt
Artist: Vasily Perov
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