अपने भीतर झाँकने का मन

अपने भीतर झाँकने का मन

अपने भीतर झाँकने का मन करे तब तो
ख़ुद में वह उतरे कि अवगाहन करे तब तो

उस हवा को मानसूनी कैसे कह देंगे
पहले ख़ुद सावन को वह सावन करे तब तो

वह जहाँ होगा वहीं से उसकी सुन लेगा
कोई दिल से उसका आवाहन करे तब तो

दूसरे भी नाम कर देंगे उसे जीवन
वह किसी के नाम ख़ुद जीवन करे तब तो

अपनी कमियाँ भी नज़र आएँगी ही उसमें
आदमी मन को अगर दर्पण करे तब तो

कुछ भी तो बचपन सरीखा है नहीं निश्छल
अपनी हर इक उम्र वह बचपन करे तब तो

दूसरों को कर सकेगी वह तभी पावन
पहले गंगा ख़ुद को ही पावन करे तब तो

ताप हर पाना किसी का है नहीं मुश्किल
कोई अपने आप को चंदन करे तब तो

उसके नीचे लोग सब महफ़ूज़ हो जाएँ
कोई धारण फिर से गोवर्धन करे तब तो

अब भी कितने रत्न हैं मौजूद सागर में
किंतु सागर का कोई मंथन करे तब तो!


Image name: Miranda
Image Source: WikiArt
Artist: John William Waterhouse
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