उतरती बाढ़
- 1 April, 2021
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- 1 April, 2021
उतरती बाढ़
दुश्मन के गढ़ में घुस कर
उसे नेस्तनाबूद करने के बाद
जैसे लौट आती है विजयिनी सेना
छोड़ कर ध्वंसावशेष और
अपनी विजय के ढेरों पद-चिह्न
ठीक वैसे ही इत्मिनान, गर्व
अभिमान और दर्प के साथ
लौट रही है अपनी ताक़त दिखाने
और तबाही मचाने के बाद
उमड़ी, उफनायी, मदमाती नदी।
जैसे पराजित राज्य की
लुकी-छिपी प्रजा
लौटती नदी के पीछे-पीछे
लौट पड़े हैं
ढोर-डंगर, घर-गृहस्थी
और ख़ुद को सहेजते
बचा-खुचा सँभालते
नदी की चढ़ाई से पूर्व
सुरक्षित ठीहों पर
जान बचा कर भागे
आदम के वंशज।
फिर से गड़ने लगे हैं खूँटे
बनने लगी हैं नॉदें
रम्भाने लगी हैं गायें
पगुराने लगी हैं भैंसें
सुलगने लगे हैं चूल्हे
खदकने लगी है अदहन
होने लगी है हदबंदी
उठने लगी हैं दीवारें
और फिर से
जुटाए जाने लगे हैं
छप्पर के लिए, धरन, थूनी,
बाँस, मूँज, बाध
और बिछावन के लिए, पुआल।
यूँ देखते-ही-देखते
समय की धार से धुल जाएँगे
तबाही के सारे चिह्न
मिट जाएँगे बरबादी के अवसाद,
और हो जाएँगे धीरे-धीरे
पहले से आबाद
जनानी ड्योढ़ी मर्दानी बैठक
जानवरों की नाद भूसा के खोप
अनाज के कोठिले घूरे के ढेर
चौका, कोहबर, सउरी, देवकुर, चौपाल
और गुलज़ार हो उठेंगी रातें
कजरी, झूमर, चैता, सोहर,
सुमिरन, आल्हा, ईसुरी के फाग से।
यूँ खिल उठेगा जीवन फिर
आदम और हव्वा के
चिर-परिचित राग से।
Image name: Bajarmaland
Image Source: WikiArt
Artist: Viktor Vasnetsov
This art work is in public domain