हमेशा रहेगा देश

हमेशा रहेगा देश

उस वक़्त भी वजूद में था देश
जब सभ्यताएँ घुटनों के बल चलती थीं
खुले आसमान को छत बनाकर
तारों में एकटक ढूँढ़ता था
कोई अपना आशियाना
पके भोजन तक थी सपनों की दौड़
कबीलों में बसा आदमी
प्रकृति के भयानक रूपों से डरता था
मगर देश से प्यार करता था

उस वक़्त भी मौजूद था देश
जब सभ्यताओं के शक्तिशाली पैरों तले
रौंदी जा रही थी मानव की कोमल भावनाएँ
तलवार के साये में भयभीत आस्थाएँ
ईश्वर को जन्म दे रही थीं
गली गली खुल रहे थे श्रद्धा के कपाट
ललचाया आदमी दूसरों के खेत चरता था
और देश से प्यार करता था

उस वक़्त भी मौजूद था देश
जब सभ्यताएँ गोरी चमड़ी ओढ़कर
काली चमड़ी को खींच रही थी शरीर से
कोई सुख पाता था यहूदियों की पीर से
जब ग़ुलामों का कोई घर नहीं था
बैलों की तरह गाड़ी में
जुता कोई नर पशु
आज़ादी का सपना लिए
घुट-घुट कर मरता था
क्योंकि देश से प्यार करता था

देश अब भी मौजूद है जब सभ्यता
उखाड़ रही है काल्पनिक मुर्दे
जब संस्कृति के जंगल क़ैद हैं
शहरों की चहारदीवारी में नौकरी की
अर्ज़ियों में दबे नौजवान सपने
मोबाइल में तलाश रहे हैं देश
जिसका वेश
संसद की सफ़ेदी से पुता है
पर असल में बैल बना
अपने ही खेतों में जुता है।


Image name: Cart with Black Ox
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gogh
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