छलावा

छलावा

एक छलावा ओढ़ती है औरतें
मन के हर दु:ख-दर्द को
हौले से भीतर मोड़ती है औरतें
एक अपना घोंसला
एक अपना नीड़
ख़ुद में उठाए ज़िंदगी भर
दौड़ती है औरतें…

एक खिड़की रात की
एक सुबह आस की
एक टुकड़ा सरज़मीं
एक चादर सिर ढँकी
एक रिश्ता प्यार का
एक भरोसा एतबार का
ज़िंदगी भर एक कोना
खोजती है औरतें

बेटी है पर तेरा घर नहीं
बहू है पर तेरा दर नहीं
तू ही अबला, तू ही सबला
तू सती, तू साध्वी
तू कुलच्छनी, तू सुलच्छनी
जन्मते ही कोख से
हज़ार पत्थर तोड़ती है औरतें

तू है देवी तू महान
तुझसे ही है कुल की शान
मर के भी न मिटने देना
बाबुल की देहरी
ससुराल की आन
सोते उठते जागते भी
यही पहाड़े
घोंटती है औरतें

मन के हर दु:ख-दर्द को
भीतर-ही-भीतर
मोड़ती है औरतें
एक छलावा ओढ़ती है औरतें…!


Image name: Midday Rest
Image Source: WikiArt
Artist: Frederick Morgan
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