ज़िंदगी हम तेरा रस्ता देखते हैं

ज़िंदगी हम तेरा रस्ता देखते हैं

ज़िंदगी हम तेरा रस्ता देखते हैं
बस इसी उम्मीद पर कब से खड़े हैं

सामने हैं जो अभी दीवार लेकर
वो कोई दूजे नहीं अपने सगे हैं

शहर की गलियों को भी आभास होगा
घर में बैठे लोग क्या-क्या सोचते हैं

हर क़दम पर ज़िंदगी के पास आकर
हम नई नज़दीकियों को देखते हैं

साथ चलना है जिन्हें वो पास आएँ
उनके साये को भी कब हम रोकते हैं।