सावन का गीत
- 1 September, 1950
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- 1 September, 1950
सावन का गीत
मेरठ की बोली
भारतीय शृंगार प्रसाधन की गुरुता और महत्ता इतनी रोचक है और यह रही होगी कि हमारे लोकगीतों तक में थोड़ा बहुत जिक्र इस विषय का मिलता है।
शृंगार तो अब कई प्रकार के और नए-नए ढंग से प्रचलित है। किंतु यहाँ मेरा आशय ठेठ भारतीय-शृंगार की प्राचीन प्रणाली से ही है। ‘लिपिस्टिक’, ‘पाउडर’, ‘रोजी-चीक’ तथा ‘क्वेटेक्स’ से नहीं।
हमारे यहाँ उबटन, काजल, बेंदी, मेहँदी, मिस्सी तथा पान और आलता तथा पुष्पहार इत्यादि के अतिरिक्त अनेक प्रकार के आभूषण और वस्त्रों में शृंगार निहित है, जिसे आजकल की नव-युवतियाँ ‘गँवारपन’ कहकर उपेक्षा की दृष्टि से देखती हैं और उपहास करती हैं।
यद्यपि बड़े-बड़े नगरों में आज प्राचीन शृंगार प्रसाधनों का नितांत अभाव न सही, परंतु फिर भी अभाव-सा ही है; जबकि भारतीय ग्रामों में आज भी किसी नवविवाहिता को देख कर हमें प्राचीन शृंगार प्रसाधन का थोड़ा बहुत आभास मिल जाता है।
नीचे लिखा गीत सावन का गीत कहलाता है और इसमें हमें थोड़ा बहुत आभार अपनी प्राचीनता का अब भी मिल जाता है जबकि प्रति वर्ष झूले पर बैठी युवतियाँ तथा आसपास खड़ी हुई झुलाने वाली रमणीयाँ अपने कोकिलकंठ से बड़े ऊँचे स्वर में अन्य गीतों के साथ-साथ इस गीत को गाती हैं।
झूलने और झुलाने में भी वही स्त्रियाँ भाग लेती देखी गई हैं जो अभी रूढ़िवाद में कुछ अंश तक लिपटी हुई हैं। आजकल की ‘फैशनेबिल लेडियाँ’ तो यदि आग्रह पूर्वक झूलने को तैयार हो भी जाती हैं तो गाने के नाम ‘शून्य’ साथ रहता है और गाने का यत्न किया भी तो सिनेमा के गानों तक ही उनकी पहुँच रहती है। तथा झौंटे देना अथवा झुलाना तो उनकी शान के विरुद्ध है ही।
अब आप इस गीत का भाव देखिए जो स्पष्ट है–
आया बीबी! सावन मास, गढेरी, हिंडोले री ननद, चंपे बाग मैं जी, महाराज॥
सब-सब झूलन जाँए, हम बी तौ जाँवगे री ननद! चंपे बाग मैं जी, महाराज॥
करो भाबो! सोलै सिंगार, पटियाँ तौ पाड़ो री भावज! चोक्खे मोम की जी, महाराज॥
मुतियन माँग भराय, बिंदिया लगाओ री भावज! लाल गुलाल की जी, महाराज॥
सौरन सींक भराय, सुरमा तौ सारो री भावज! चोखा नैन मैं जी, महाराज॥
दाँतौं मैं मिस्सी जमाय, बिड़ला तौ चाबो री भावज! नागर पान का जी, महाराज॥
रचनी सी मेहँदी लगाए, चुड़ला तौ पैरो रो भावज! हाथी दाँत का जी, महाराज॥
कानौं मैं बाले जो पैर, बेसर तौ पैरो री भावज! झलका केर की जी, महाराज॥
गल पैरो नौलखहार, बाजू तौ पैरो री भावज! बलवाँ रेसमी जी, महाराज॥
हाथौं मैं पौंची जो पैर, गूँठे तौ पैरो री भावज! जड़वाँ आरसी जी, महाराज॥
ढूँगे पै तगड़ी जो पैर, गुच्छा लगाओ री भावज! ताली बाजनी जी, महाराज॥
पैरौं मैं पायल पैर, बिछुवे तौ पैरो री भावज! चोखे बाजने जी, महाराज॥
बालो भाबो! चमक का चिराग, धमक अटारी री राजा की बेटी चढ़ गई जी, महाराज॥
खोलो राजा, चंदन किवाड़, संकल तौ खोलो रे सासू के जाए, सार की जी, महाराज॥
नहीं खुलते चंदन किवाड़, संकल न खुलै री राजा की बेटी, सार की जी, महाराज॥
बीती है आधी सी रात, धमक अटारी री राजा की बेटी उतरी जी, महाराज॥
कहो भाबो! रैन की बात, कैसे मिलाया री भावज! बाला जीवड़ा जी, महाराज॥
तेरा भइया मुरख गँवार, सार ना जानी री ननद! बाले जीब को जी, महाराज॥
दूदौं के लोटे उनके हाथ , धमक अटारी री, ननद भाबो चढ़ गई जी, महाराज॥
खोलो भइया! चंदन किवाड़, संकल तौ खोलो रे मेरी माँ की जाए, सार को जी, महाराज॥
खुल गए चंदन किवाड़, संकल तौ खोली री मेरी माँ की जाई, सार की जी, महाराज॥
लैई धन छतियौं लगाए, आँसू तौ पूछै री राजा का बेटा साल सै जी, महाराज॥
कहो गोरी! उन दिन की बात, कैसै तौ काटे री राजा की बेटी! वे दिना जी, महाराज॥
दिन-दिन भनेली के बीच रात, निभाने रे अम्मा के धोरै पड़ रहे जी, महाराज॥
कहो राजा उन दिन की बात, कैसै तो काटे रे राजा के बेटे! वे दिना जी, महाराज॥
दिन-दिन कचैरी के बीच, रात नचाया री राजा की बेटी! तायफा जी, महाराज॥
हुआ है सबेरा जो आप, धमक अटारी री राजा की बेटी ऊतरीं जी, महाराज॥
कहो भावो! रैन की बात, कैसे मिलाया री भावज! बाला जीवड़ा जी, महाराज॥
तेरा भइया चतुर सुजान, सार तौ जानी री ननद! बाले जीव की जी, महाराज॥
अपनी का भइया कर दूँ साथ, छठे री महीने री बीबी कू भेजूँ कोथली जी, महाराज॥
आए तौ सावन री ननद! भेजूँ कोथली जी, महाराज॥
यह तो एक सावन के गीत का उद्धरण दिया है मैंने; किंतु इसी प्रकार हमारे अनेक लोकगीतों में शृंगार प्रणाली का वर्णन मिलेगा जैसे कि जन्मगीत, विवाह गीत इत्यादि।