लाजू आया, लाजू आया
- 1 April, 1951
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- 1 April, 1951
लाजू आया, लाजू आया
दूधिया सफेद चाँदनी में बाबा की दाढ़ी के सफेद बाल, जो कई रोज़ से कंघी न करने के कारण उलझे हुए थे, नीचे से परेशान नज़र आते थे। जैसे वह कोई राज्यच्युत सम्राट हो। उसकी आँखों की चमक यह बता रही थी कि उसे अपना सिंहासन वापस मिलने की पूरी आशा है।
मेरी कल्पना प्राचीन इतिहास के उस युग में खो गई, जब सर्वप्रथम पूर्व की ओर से, ईसवी सन् के आरंभ में, सिथियन लोगों ने भारत में प्रवेश किया था। ये लोग यहाँ बसते चले गए। उन्हें अपना भविष्य उज्ज्वल नज़र आता था। उनकी रगों में नया लहू दौड़ रहा था। उनकी संतान ने आर्य-संस्कृति के बहुत से प्रभाव स्वीकार कर लिए और वे गुर्जर या गूजर कहलाने लगे। अपने बाहुबल से उन्होंने गुर्जर राष्ट्र की नींव रखी, जो चौथी और पाँचवी शताब्दी में यौवन पर था। फिर आक्रमणकारियों की रोक-थाम उनके बस का रोग न रहा। उन्हें गुर्जर-राष्ट्र से खदेड़ दिया गया। पर वह प्रदेश आज भी गुजरात के नाम से प्रसिद्ध है और वह सदा गुर्जरों के गौरवमय अतीत की याद दिलाता रहेगा। गुजरात से वापस आकर गूजर पंजाब में बस गए और यहाँ उन्होंने चिनाब और झेलम के बीच नए गुजरात की नींव रखी। पर इतिहास ने फिर करवट ली और वह कबीला, जो कभी अपने राज्य पर गर्व करता था, आज भैंसें पालने और दूध-घी बेचने में मग्न है। हाँ, गुजरात नगर गूजरों की तेज तलवारों की याद दिलाता है और आज भी जिला गुजरात की साढ़े तेरह प्रतिशत जनसंख्या उन्हीं गूजरों की वंशज है। पंजाब, सीमा-प्रांत और जम्मू तथा कश्मीर के गूजर सब मुसलमान हैं, पर राजस्थान, मध्य भारत और उत्तर प्रदेश में बसे हुए सभी गूजर हिंदू हैं। और गुजरात-काठियावाड़ में आज भी गूजर ब्राह्मण और गूजर वैश्य पुरातन गूजरों का स्मरण दिलाते हैं।
खाने से निबट कर भी हम चूल्हे के पास ही बैठे रहे। अब चूल्हे से अलाव का काम लिया जा रहा था। इस रोशनी में बाबा की दाढ़ी और नूरी की बालियाँ अपनी-अपनी कहानी कहती मालूम होती थीं। दोनों में पूरी एक पीढ़ी का अंतर था। बुढ़िया बैठी ऊँघ रही थी। किसी को उसकी चिंता न थी।
मैं चाहता था कि नूरी परे किसी चट्टान पर बैठकर गुर्जरी रागिनी सुनाए–वह मानव आत्मा की अर्थपूर्ण प्रार्थना जिसे सर्वप्रथम किसी गुर्जर गायक ही ने जन्म दिया था। और मैं चाहता था कि वह अपने पैरों में गूजरी पहन कर मेरे साथ थिरकती हुई चले। गूजरी अर्थात् वह पायल, जो सर्वप्रथम किसी गूजर युवती के पैरों में ही झंकृत हो उठी होगी। पर मुझे मालूम हो चुका था कि ये गूजर चरवाहे गुर्जरी रागिनी और गूजरी पायल के संबंध में कुछ नहीं जानते।
नूरी उस समय जंगल की शहज़ादी मालूम होती थी। मैं उससे कहना चाहता था कि उसकी रगों में सिथियन रक्त बह रहा है। उसे अपने कबीले की परंपराओं पर गर्व था। यद्यपि अब तक किसी ने उसे गुर्जर-राष्ट्र की गाथा नहीं सुनाई थी। मैंने सोचा कि क्यों न मैं ही आज यह सब गाथा सुना डालूँ। पर मैं खामोश बैठा रहा। मुझे भय था कि कहीं वह उदास न हो जाए और उसकी उदासी उसके स्वच्छंद मुक्त जीवन पर भारी चट्टान बन कर न गिर पड़े।
आखिर मैंने ज़रा सम्हल कर कहा–“क्यों, नूरी तुम्हें कोई गीत तो जरूर याद होगा।”
नूरी लजाकर चुप रह गई। पर बाबा ने मेरी सिफारिश करते हुए कहा–“ऊपर आकाश, नीचे धरती। हाँ तो, सुना दो न बेटा नूरी, एक-आध गीत।”
“कौन-सा गीत सुनाऊँ, बाबा?”
“अरे वही लाजू का गीत सुना दो नूरी बेटा।”
“ऊहूँ, वह तो अच्छा नहीं, बाबा।”
मैंने कहा–“मैं तो अब वही गीत सुनूँगा।
“अच्छा तो सुनो” नूरी ने उड़ने के लिए उत्सुक अबाबील के अंदाज़ में कहा–“राही, यह तो हमारा मामूली-सा गीत है।”
लाजू आया,
लाजू आया,
भला केहड़े कम्मे आया, वे ‘लाजुआ’?
वे लाजुआ!
चन्न म्हाड़ा चढ़िया
किक्करा दी पुम्बली
लक्क तेरा पतला
ते छाती देर कुंगली
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्न म्हाड़ा चढ़िया
उप्पर रजोरीया
बन जायाँ पख्खरू
मिली जायाँ चारीया
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्न म्हाड़ा चढ़िया
टिब्बीयाँ दे ओहले
पुट्टी सुट्टां टिब्बीयाँ
चन्न मुखों बोले
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्न म्हाड़ा चढ़िया
बब्बियाँ दे ओहले
कीकण आसां चन्ना
जिंदरियाँ दे ओहले?
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्नां तेरे बागें विच्च
सुक्की जांदे रुख्ख वे
निक्की हुँदी भरी जांदी
चुक्की जांदे दुख्ख वे
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्ना, तेरी हट्टी पर
सोहा रंग डोहलिया
पारे पारे जांदा चन्न
मुखों नहियों बोलिया
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्ना, तेरी हट्टी पर
बिकदियाँ डंडीयाँ
मरी जाँदे गंभरू
छोड़ी जाँदे रंडीयाँ
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चिट्टी चिट्टी चादर चन्नां
फुल्ल पांदी फेरवां
दस्सी जाँदा जम्मुआं
चली चाँदा जेहलमाँ
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्न म्हाड़ा चँढ़िया
विच्च वे कपाहु दे
इक्क दु:ख तेरे चन्ना
दूजा तेरी माऊ दे
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्न म्हाड़ा चढ़िया
रक्कड़ा मैदाण
कुघे हथ्थ भेजां चन्ना
छतरी रुमाल
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चिट्टी चिट्टी चादर चन्ना
चारे चूकां गिल्लीयाँ
इक्क वारी मिल चन्ना
पीरे दियाँ छिल्लीयाँ
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चिट्टी चिट्टी चादर चन्ना
कड्ढ़नीं कसीदा
इक्क वारी मिल चन्ना
फिरीदा नसीबा
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्ना तेरी हट्टी पर
बिकदे बदाम
सानू नी सी पता चन्ना
लग्गी जाँदी लाम
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
चन्न म्हाड़ा चढ़िया
उप्पर लकोठूआ
मैं भेजां चिट्ठीयाँ
ते चन्न भेजे काटुआ
लाजू आया
लाजू आया
भला केहड़े कम्मे आया, वे लाजुआ?
भला जुत्ते गंढन लाया, वे लाजुआ!
* *
लाजू आया,
लाजू आया,
भला तुम किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
लाजू आया।
मेरा चाँद उदय हुआ
कीकर की टहनी पर;
मेरी कमर पतली है,
मेरी छाती मुलायम है।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला तुम किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
मेरा चाँद उदय हुआ
ऊपर रजोरी की ओर;
तुम पक्षी बन कर
मुझे चोरी-छुपे मिल जाओ।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला तुम किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
मेरा चाँद उदय हुआ
पहाड़ियों के पीछे;
इन पहाड़ियों को उखेड़ डालूँ,
चाँद मुख से बोले।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
मेरा चाँद उदय हुआ
सरकंडों के पीछे;
मैं कैसे आऊँगी ओ चाँद,
इन तालों की चोट से?
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
ओ चाँद, तेरे बाग में
वृक्ष सूख रहे हैं;
काश! मैं छोटी आयु में मर जाती,
ये दु:ख तो खत्म हो जाते।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
ओ चाँद, तेरी दुकान पर
लाल रंग गिराया;
उस पार जाता हुआ चाँद
मुख से नहीं बोला।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
ओ चाँद, तेरी दुकान पर
बालियाँ बिकती हैं,
युवक मर जाते हैं,
पीछे विधवाओं को छोड़ जाते हैं।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
सफेद-सफेद चादर है, ओ चाँद,
मैं इस पर घेरेदार फूल काढ़ती हूँ;
तुम जम्मू बताकर जाते हो,
चले जाते हो जेहलम।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
मेरा चाँद उदय हुआ
कपास के बीच,
एक तो तुम्हारा दु:ख है, ओ चाँद,
दूसरे में दु:खी हूँ तुम्हारी माँ के कारण।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
मेरा चाँद उदय हुआ
खुले मैदान में;
किसके हाथ भेजूँ, ओ चाँद,
ये छतरी रुमाल?
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ चाँद?
सफेद-सफेद चादर है, ओ चाँद,
चारों किनारे गीले हैं,
एक बार मिलो, ओ चाँद,
मैं पीर को बकरियाँ दूँगी।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
सफेद-सफेद चादर है, ओ चाँद,
मैं कसीदा काढ़ रही हूँ;
एक बार तो मिल जाओ, ओ चाँद,
मेरा नसीब जाग उठे।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
ओ चाँद, तेरी दुकान पर
बादाम बिकते हैं;
हमें मालूम न था, ओ चाँद,
कि लाम लग जाएगी।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आये हो, ओ चाँद?
मेरा चाँद उदय हुआ
ऊपर लकाठू गाँव की ओर;
मैं चिट्ठियाँ भेजती हूँ,
चाँद कार्ड भेजता है।
लाजू आया,
लाजू आया,
भला किस काम के लिए आए हो, ओ लाजू?
भला तुम्हें जूते गाँठने पर लगा दिया, ओ लाजू!
नूरी का गीत मेरे लिए कुछ कम आकर्षक न था। इसमें वह समस्त वेदना निहित थी जो चाँदनी रात के समय प्रेमी की बाट जोहते समय किसी भी प्रेयसी के हृदय में छलक पड़ती है। मैं यह भी समझ गया कि चंद्रोदय का दृश्य पहाड़ी प्रदेशों में विशेष रूप से उल्लेखनीय समझा जाता है।
बूढ़े गूजर को शायद लाजू से कोई सरोकार न हो सकता था। न जाने क्या सोच कर बोला–“औरत बेटे की माँ बनती है तो हर कहीं खुशी के ढोल बजते हैं। पर जब भैंस ब्याती है और कटरी जन्म लेती है तो भरपूर ईद का जशन मनाया जाता है। ऊपर आकाश, नीचे धरती। सौगंध है आकाश और धरती की।”
उस समय जैसे मेरी कल्पना के किवाड़ नए सिरे से खुल गए। मैंने आकाश की ओर देखा। तारे यों टिमटिमा रहे थे जैसे किसी होशियार नाइन ने नई नवेली दुलहन के चेहरे पर जगह-जगह चमकी की बुँदकियाँ लगा दी हों। फिर मैंने अपने नीचे धरती के स्पर्श का अनुभव किया, जो माँ की गोद के समान मुझे आज भी वही आश्वासन दे रही थी जो वह आकाश और धरती के बीच मुक्त विचरने वाले इन गूजरों को देती आई थी।
बुढ़िया ऊँघते-ऊँघते धरती पर लेट गई थी। नूरी बुझती आग को कुरेद रही थी और बाबा एक अनुभवी विचारक के समान आँखें झपकाते हुए कह उठा–“ऊपर आकाश, नीचे धरती। नूरी बहुत अच्छा तो नहीं गा सकती। पर लाजू का गीत ही उसे अधिक पसंद है। जैसे कोई और गीत वह गा ही न सकती है।”
Image Source: WikiArt
Artist: Amrita Sher-Gil
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