धीरे-धीरे
- 1 December, 2015
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-ghazal-dheere-dheere-by-poet-ramdarash-mishra/
- 1 December, 2015
धीरे-धीरे
बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे
किसी को गिराया न खुद को उछाला
कटा जिंदगी का सफर धीरे-धीरे
जहाँ आप पहुँचे छलाँगे लगा कर
वहाँ मैं भी पहुँचा, मगर धीरे-धीरे
पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी
उठाता गया यों ही सर धीरे-धीरे
गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे
न हँस कर न रो कर किसी में उड़ेला
पीया खुद ही अपना जहर धीरे-धीरे
जमीं खेत की साथ लेकर चला था
उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे
मिला क्या न मुझको ऐ दुनिया, तुम्हारी
मुहब्बत मिली है मगर धीरे-धीरे।
Image Courtesy : LOKATMA Folk Art Boutique
©Lokatma