मधुप्रभात
- 1 April, 1951
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- 1 April, 1951
मधुप्रभात
प्रात की किरणें सुनहली हिलीं वंदनवार बनकर,
आ गया मधुमास नवयुग का नया उपहार लेकर!
अखिल अंगों में धरा के आज वासंती सजी है,
मलय की मनुहार मधुकर गीत की बीणा बजी है!
खुल गया घूँघट कली का विहँसती मधुमय जवानी,
तुल गया मन कह रहा कन-कन मिलन की कल कहानी!
आम्रवन में मुग्ध मंजरियाँ सुरभि के द्वार खोले,
स्नेह स्वागत को मचलती तितलियों के पंख डोले!
माधवी की साँस में उछ्वास यौवन का पिघलता,
प्रीति की परछाइयों में पल रही सुख की सजलता!
यह बसंत बहार नव अभिसार की मधुमती माया,
कर रही पूजन मदन का विश्वछवि की कुसुम काया!
देखता कवि भावना-दृग खोल चारो ओर अपने,
बन गए नवयुग चरण के चिह्न व्याकुल विगत सपने!
कोकिला कलकंठ से कविकंठ के मधुबोल बोली,
प्राण के पतझार ने भर ली समुद सुख सुमन-झोली।
Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
©Lokatma