अब तन मंदिर उजियार करो।
- 1 April, 1951
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- 1 April, 1951
अब तन मंदिर उजियार करो।
अब तन मंदिर उजियार करो।
मेरे कर्मो नैवेद्य बनो
तुम चिर नंदन वन से विकसो
मेरे भावो, तुम सुमन बनो
विकसित पुलकित अविरत बरसो
आँसू अब अर्घ्य बनो, पीड़ा
उसमें सुगंधि भर लाएगी
जो मूर्ति अंतरित हुई यहाँ
सौरभ पर दौड़ी आएगी
मेरी पूजा के पात्र अरे,
इन अंगों को अविकार करो।
मेरे तम ! तेरी गहराई
भास्कर की किरणें क्या जानें
मेरे तन ! तेरी मौलिकता
मन की आँखें क्या पहचानें
रजनी के पंखों पर उतरी
तन की कुछ हृत्कंपन जानी
मिट्टी में घुलते-घुलते ही
अंगों में कुछ छवि निखरानी
तुम अपनी कथा सुनाने को,
भाषा का आविष्कार करो।
अब छूना चाहती दृष्टि उसे
जो अब तक अलख अगोचर था
अब उठा चाहते प्राण राग
वह बन खोया जिसका स्वर था
जिससे मेरे परवश मन से
युग-युग का आज अभाव मिटे
जिससे मेरे परवश तन से
युग-युग का आज दुराव मिटे
मेरी ओ अंध सतत श्रद्घे,
मेरे सपने साकार करो।
Image: Palm Tree and Bird
Image Source: WikiArt
Artist: Joseph Stella
Image in Public Domain