तीन कड़ियाँ

तीन कड़ियाँ

बुद्धि कहती, और अनुभव मानता है,
व्यर्थ है वह साधना जिसकी विफलता,
जानता साधक स्वयं, है पूर्वनिश्चित।

युक्तियाँ क्यों विजय की रहता सिखाता
स्वप्न जागृति को निरंतर, जानकर भी
शक्ति-साधन-हीन है, असहाय है वह!

विवशता स्वीकार करने की विवशता
तूलिका है कल्पना की, जो बनाती
गत निशा का चित्र दिन के विमल पट पर।


Image: Ceiling Pattern, Tomb of Qenamun, Ancient Egypt
Image Source: WikiArt
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बालकृष्ण राव द्वारा भी