डगर न कटती हाथ गहो तुम!
- 1 August, 1951
शेयर करे close
शेयर करे close
शेयर करे close
- 1 August, 1951
डगर न कटती हाथ गहो तुम!
डगर न कटती हाथ गहो तुम!
जीवन रेखा पगडंडी सी
धूम-धाम गुम गई तिमिर में,
डगमग पग, विश्वास-शिथिल मग
डूब गया मन, हारा फिर मैं;
अंतर के सामीप्य देवता
बाहर भी तो साथ रहो तुम!
कंटक साँसों पर मन फूला
पर पथ कंटक फूल बने कब?
जाने कितने स्वप्न नयन तक
आए, जीवन कूल बने कब?
कंटक-जीवन के मधु संगी
मेरे सुखदुख साथ रहो तुम!
जीवन बहिया स्वर सागर में
बही, कि जब-जब तुम्हें पुकारा
ध्वनि प्रतिध्वनि के बीच हिरानी
मेरी भाव मरुस्थल धारा;
रहो न तट पर, गहरे डूबो
लहरों में भी साथ बहो तुम!
पथ के दोनों ओर हरितिमा
फैली, ज्यों विश्वास तुम्हारा,
टिमटिम करता दूर गगन में
पथ निर्देशक हँसमुख तारा;
पग पग साथ रहो अविनाशी
ओझल दृग से और न हो तुम!
सघन छाँह में बाँह तुम्हरी
घेरे हो यह जर्जर काया,
शरद्-प्रसन्न नदी से मन में
प्रतिबिंबित हो अपनी छाया;
अंतहीन रस-राग-रंग की
एक बार फिर कथा कहो तुम!
Image: Cactus in Bloom
Image Source: WikiArt
Artist: Robert Julian Onderdonk
Image in Public Domain