भोर के बादल
- 1 August, 1951
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on reddit
Share on tumblr
Share on linkedin
शेयर करे close
Share on facebook
Share on twitter
Share on tumblr
Share on linkedin
Share on whatsapp
https://nayidhara.in/kavya-dhara/bhor-ke-badal/
- 1 August, 1951
भोर के बादल
घिर आईं अँखियन में बदरिया भोर की
बीता दुर्दिन रोकर
बातों में बात कटी
पिया-पिया रटते ही
बरखा की रात कटी
सुधियों की पुरवैया बहती कुछ जोर की।
बिरहा की डारी पर
कजरी की तान उठी
धरती के होठों पर
सोई मुसकान उठी
गूँज उठी बूँदन में बतियाँ चितचोर की।
पाहुन से बादरवा
भिनसारी आ गए
उमड़-घुमड़ गरज-गरज
कर मल्हार गा गए
थिरक-थिरक नाच उठीं पाँखड़ियाँ मोर की।
घिर आईं अँखियन में बादरिया भोर की।
Image: Dawn
Image Source: WikiArt
Artist: Joseph Farquharson
Image in Public Domain