नई धारा

नई धारा

हे युवक सँभालो तुम इसको आती जो आज नई धारा।
सुन लो कानो से जो इसका गाती जय गान सर्वहारा॥
जिसके गर्जन से साम्राज्यों की ये नीवें तक उखड़ गईं–
अब रह न सकेगा जनता का जनवाद कहीं न्यारा-न्यारा
गिर गए मुकुट भूपालों के छिन गई भूमि भूपतियों की
बंदी ने फिर हुँकार किया युग-युग की आज गिरा कारा?
मिट गईं जीर्ण वे दीवारें, जो हृदय-हृदय के बीच उठीं!
पर देश-देश के बीच अभी लहराता है सागर खारा!
मानव का शोषण कर मानव अपना ऐश्वर्य जुटाता जो,
गंगा में फेंक दिया हमने वह शास्त्र युगों का हत्यारा!
यह स्वतंत्रता की साँस आज राष्ट्रों के शव ले रहे सभी,
दृढ़ सर्वतंत्र जनतंत्र बने बिखरा-सा भूमंडल सारा!
नीली पीली भूरी काली गोरी क्या जाति मनुष्यों की–
है देव कहाँ? दानव कैसा? हो एक नाम ‘मानव’ प्यारा!
अब हाथ बढ़ेंगे मानव की मानवता फिर से लाने को,
मानव मानव सब एक रहें–होगा अब यही नया नारा!


Image: A river
Image Source: WikiArt
Artist: Isaac Levitan
Image in Public Domain