पूछा जो बार-बार

पूछा जो बार-बार

पूछा जो बार-बार
कैसे तुम रेखाकार
करते हो स्वप्न-भार
मौन खड़े चित्रकार

मथे भाव मथे शब्द
फिर भी कविराज स्तब्ध
सत्य कि आत्मोपलब्ध
अब्द – श्रण विश्रब्ध

मूर्तियाँ सवस्त्र नग्न
पूर्ण, अर्द्ध और भग्न
पड़ी हुई असंलग्न
शिल्पी थे कार्यमग्न

तभी उठी एक तान :
सृष्टि गूढ़ औ’ अजान।


Image: The Atelier of the Sculptor Simões de Almeida
Image Source: WikiArt
Artist: Jose Malhoa
Image in Public Domain

प्रभाकर माचवे द्वारा भी