नील नभ में मेघ छाए
- 1 October, 1951
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- 1 October, 1951
नील नभ में मेघ छाए
नील नभ में मेघ छाए
या प्रणय के दूत आए।
आज प्रिय है दूर मुझ से
सजल स्मृति है सजग उर में
व्योम का अंतर द्रवित कर
प्रीति के जलजात आए,
या विरह दीपक जलाए।
रो रहा है हृदय मेरा
रो रही है नियति बाला
सिसकियों के विकल स्वर में
लोचनों ने गीत गाए…
या सुभग तुम याद आए।
मेघ में रिमझिम बसी पर
नयन तो क्रंदन छिपाए
मौन का आधार पाकर,
अश्रु के पग थरथराए,
या सदय कुछ पास आए।
चिर मिलन मनुहार लेकर
नील नभ में मेघ छाए।
Image: Rain in the Oak Forest
Image Source: WikiArt
Artist: Ivan Shishkin
Image in Public Domain