आई सरस बरसात वाली

आई सरस बरसात वाली

जलन की ग्रीष्म गई, आई सरस बरसात वाली!
आ रही सुंदरी गगन पर खोल कर घन-केश कोई,
या प्रथम आषाढ़ के दिन भेजता संदेश कोई;
हो असह्य उठी अरे क्या यह किसी की विरह-ज्वाला
भार लेकर व्यथा का यह चला प्रिय के देश कोई।
बह चली पुरवा मनोहर घिर रही यह घटा काली॥

खिल उठे चर-अचर, नूतन प्राण का संचार करती,
आ रही मधु-रस लुटाती, रिक्त यह संसार भरती;
थम रही पुरवा पवन, हैं पिघलते घन सजल होकर,
दूब मरती जी उठी, है तृप्त होती तृषित धरती।
देख मधुवन सूखता घनश्याम ने यह सुधा ढाली॥

चढ़ पवन के यान पर बादल चतुर्दिक घूमते हैं,
छक रहे हैं रूप-मधु पी, मस्त होकर झूमते हैं;
दामिनी छिपती चली प्रिय-संग बन आलोक पथ का–
पकड़ कर भुजबंधनों में अधर उसके चूमते हैं!
मुखर हो उठते घुँघुरु तब, छिटकती स्मिति, बजी ताली॥

‘वन-श्री खिल उठे, होवे धरा का आँचल अरा अब
सृष्टि के हित बीज नव धारण करे यह उर्वरा अब,
भर उठें सरिता सरोवर, प्राण का रस छलकता हो;’
दे रही वरदान-मंगल इंद्रधनुषी अप्सरा अब।
फिर दिशाओं के कपोलों पर खिली अनुराग लाली॥


Image: Rain in Belle-Ile
Image Source: WikiArt
Artist: Claude Monet
Image in Public Domain