विदा के क्षणों में

विदा के क्षणों में

रक्त भरे आँसू छलका कर प्रणयिनि! क्यों दे रही विदाई
कड़वे सागर की मीठी मसोस में कितनी पीर समाई

भाल चूमते ही आँखों ने क्यों सावन का नूर बहाया
आज पीठ पर हाथ फेरते ही क्यों क्रंदन करती काया

मिनटों में चल देगी गाड़ी दूर चली जाओगी रानी।
जीवन तट पर व्याकुलता का क्यों फिर इतना आँधी-पानी

मेरे प्राणों में फिर जागी घायल अरमानों की ममता
दूर चली जाओगी तुमको कितना देखूँ हिया न भरता

पुलकों से सर्वांग भर रहा आज पीठ का स्पर्श तुम्हारा
सूनी पथरेखा पर जैसे आई हो कलरव की धारा

धूल भरा मृत शिशु के बंद खिलौना घर-सा यह मेरा मन
कुछ मिनटों के लिए कहीं वर्षों में होता उतना चेतन

अपने बेपहचान देश को जब तुम जाने लगतीं कातर
अंगारों से होड़ लगातीं तब शशि किरणें मेरे अंदर

किस मायावी की छलना-सी पंछी की उड़ान ले मारी
मिनटों में चल देगी गाड़ी गहरी कर मेरी अँधियारी

क्या-क्या सोचा करता था भूला अपनी परिमिति के सुख पर
समझा आज प्रीति का कितना अपरिमेय संताप अनश्वर

मेरे फीके जीवन की ज्वाला का सूखा पंथ न सींचो
ओ जीवन की बाती! ठहरो और अधिक आलोक न खींचो

पागल की-सी सृष्टि हमारी थी यह दो दिन की पहुनाई
किंतु तुम्हारे अधरों पर अभिव्यक्ति न एक मूक रह पाई

श्वासों की भाषा के आगे चली दृगों की नमी ललाई
रक्त भरे आँसू छलका कर प्रणयिनि क्यों दे रही विदाई


Image: Wedding Procession – Bride Under a Canopy LACMA
Image Source: Wikimedia Commons
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श्री अंचल द्वारा भी