वे वादे कितने झूठे थे!

वे वादे कितने झूठे थे!

उस आत्मसमर्पण के क्षण में, उन प्रथम मिलन की रातों में
मैंने थे वादे किए बहुत तुझसे बातों ही बातों में
उन दिनों प्रिये, लगते वे कितने सच्चे और अनूठे थे!
पर, आज सोचता हूँ–सचमुच वे वादे कितने झूठे थे?
वे वादे सच्चे भी होंगे, कैसे हो इसका एतबार?
जीवन किस दिन की आस करे, यौवन किस दिन का इंतजार?
माना, जीवन अपने अमूल्य बलिदानों पर विश्वास करे
पर, सांसारिक सुख का कामी यौवन किस दिन की आस करे
घनघोर अमा के अंधकार से लड़ने वाला तारा मैं
संघर्ष-चक्र में पिसता-सा अदना जर्रा बेचारा मैं
बेबस अजीब-सा घिरा पड़ा हूँ मजबूरी के घेरे में
बहता जाता हूँ डूब ज्वार-भाटों के कठिन थपेड़े में
मन है चोटों से चूर सब्र की बेसब्री से तार-तार
लेकिन मैंने की आह नहीं, जीवन से मानी नहीं हार
पर एक व्यथा, बस एक फिक्र अपना कलंक का टीका है
मुजरिम तेरा मैं प्रिय! जुर्म मेरा वादाशिकनी का है
यौवन की सहज चपलता में तुझको कह डाला था ‘रानी’
पर सोच रहा हूँ थी वह मेरे भावुक मन की नादानी–
‘रानी’ तो था कह दिया, किंतु सरताज आज तक ला न सका
संगिनि, अपने मंसूबे को सच कर मैं हाय, दिखा न सका
जीवन कहता है–तू अपने बलिदानों पर विश्वास करे
पर सांसारिक सुख का कामी यौवन किस दिन की आस करे?

जगजीवन पर सत्ता छायी है बुर्जों की, मीनारों की
जिनके साए में अंकित है हस्ती सरमाएदारों की
मानव वहशी का रूप, सभ्यता सड़कर बदबूदार बनी
सबसे बढ़कर तो यह कि कला पूँजी की खिदमतगार बनी
पर नई रोशनी फैल रही, तू भी अपने मन को टटोल
झूठे वादों को भूल युगों से दिल की उलझी गाँठ खोल
यह वार न खाली जाएगा, अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं
हम मेहनतकश मजदूर रहेंगे मुफसिल व मजबूर नहीं
पशुता की कारा टूटेगी, गिरती दीवारें बोल रहीं
समता की धारा फूटेगी हिलती मीनारें बोल रहीं
जनवादी ताकत जीतेगी, आएगी धरती पर बहार
मैं भी उस दिन की आस करूँ, तू भी उस दिन का इंतजार


Image: Bush Idyll (The Flute Player)
Image Source: WikiArt
Artist: Frederick McCubbin
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