द्वार खोलो
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- 1 January, 1952
द्वार खोलो
नींद में भीगा हुआ वह स्वर तुम्हारा–द्वार खोलो
तिमिर-स्नाता रात–मैं पथ पर खड़ा हूँ, द्वार खोलो
कौन हो तुम कौन मैं अब तक नहीं पहचान पाई
गंध शीतल कामिनी की ले सजल वातास आई
चौंक कर जागी, खड़ी हूँ खोल वातायन उनींदी
सोचती किस पूर्व परिचित की हृदय-ध्वनि दी सुनाई
कह रही थी मूक मानस की प्रणति–सौ बार बोलो
नींद में डूबा हुआ वह स्वर तुम्हारा द्वार खोलो
कर रहे थे बात यौवन की तरंगित अंग मेरे
पीत केशर सरसिजों से सुरभिवाही अंग मेरे
जल रहा था कक्ष का नवदीप मेरे पुण्य फल-सा
थी जिसे उन्मत्त शलभों की पिपासित पाँत घेरे
याद आया–मैं किसी के बाहुओं पर गाल रख कर
मुग्ध सोई थी कभी जब उल्लसित थे मेघ झरझर
एक जाग्रत स्वप्न-सी पथ पर खड़ी हूँ द्वार खोले
आज इंद्रियजीत वह सुख तुम न आए तुम न बोले
काल के तूणीर से आया प्रखर क्यों तीर सुधि का
बन गई मेरी पिपासा ही तुम्हारे बोल भोले
मुक्त नील अनंत के पात्रो सितारो आज रो लो
नींद में भीगा हुआ वह स्वर तुम्हारा–द्वार खोलो
Image: Girl in a Doorway
Image Source: WikiArt
Artist: Childe Hassam
Image in Public Domain