न तुमने दुश्मनी में ही कमी की

न तुमने दुश्मनी में ही कमी की निभाई भी रिवायत दोस्ती कीकुहासों से निकलना चाहता हूँ उजालों तक पहुँच है क्या किसी की

और जानेन तुमने दुश्मनी में ही कमी की

तमंचे को सटाकर कनपटी से

तमंचे को सटाकर कनपटी से बदल जाएगा सच क्या हेकड़ी से?हमारी दोस्ती है प्यास से लेकिन हमारी दुश्मनी है क्यों नदी से?अँधेरों से लड़ेंगी कल को ये ही लिखी हैं हमने गजलें रोशनी से

और जानेतमंचे को सटाकर कनपटी से

पत्थरों का शहर पत्थरों की जुबाँ?

पत्थरों का शहर पत्थरों की जुबाँ?तुमको पूछें कहाँ तुमको ढूँढें कहाँ?तुमको देखा तो सौ-सौ बहारें खिली

और जानेपत्थरों का शहर पत्थरों की जुबाँ?

कौन बचपन छीन कर हमको जवानी दे गया

कौन बचपन छीन कर हमको जवानी दे गया भोलेपन, मस्ती के बदले बेईमानी दे गयानाव कागज की, तितलियाँ, आम, अमरख, इमलियाँ ले के कागज पर छपीं कुछ लंतरानी दे गयाकुछ नसीहत, वर्जना, और मन का जिद्दीपन

और जानेकौन बचपन छीन कर हमको जवानी दे गया

धुंध, न कोहरा, न ही जालों का नाम है

धुँध, न कोहरा, न ही जालों का नाम है जिंदगी ऐ दोस्त! उजालों का नाम हैगम के बादलों घिरी अँधेरी रात में सुबह के हसीन ख्यालों का नाम हैगर सुलझ गई तो है हर प्रश्न का उत्तर वरना ये अंतहीन सवालों का नाम है

और जानेधुंध, न कोहरा, न ही जालों का नाम है

खामखा मखलूक पर बिगड़ा हुआ है

खामखा मखलूक पर बिगड़ा हुआ है आजकल मेरे खुदा को क्या हुआ हैपूछ तो आखिर घड़ी को क्या हुआ है क्यों समय का थोबड़ा उतरा हुआ हैखामुशी तन्हा रहा करती थी अक्सर बाद-मुद्दत शोरो-गुल तन्हा हुआ है

और जानेखामखा मखलूक पर बिगड़ा हुआ है