गुँचे-सा जब भी रह गया खुद में बिखर के मैं

गुँचे-सा जब भी रह गया खुद में बिखर के मैं इक अश्क बन के आँख से आया उतर के मैंहैरत से कैसे घूरने लगता है ये मुझे देखूँ कभी जो आइना थोड़ा सँवर के मैंजर्फ ओ शऊर आज भी हमराह हैं मेरे

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फूल से कर के दोस्ती तितली

फूल से कर के दोस्ती तितली शाखे नाजुक से उड़ गई तितलीएक बेजान कागजी तितली क्यों बनाता है आदमी तितलीमेरी वहशत जदा निगाहों को

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इस चमन पर आप का उपकार है

इस चमन पर आपका उपकार है कब हमें, इस बात से इनकार हैठूँठ ही केवल अकड़ दिखला रहे है नमित वह शाख जो, फलदार हैसनसनाते इस पवन को जान लो तेज होती, धूप को, ललकार है

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बतलाए देते हैं

बतलाए देते हैं यों तो बतलाने की बात नहीं खलिहानों पर बरस गए वो खेतों पर बरसात नहींनदियाँ रोकीं बाँध बनाए अपना घर-आँगन सींचा औरों के घर डूबे फिर भी उनका कोई हाथ नहीं

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आँकड़े ही आँकड़े हैं

आँकड़े ही आँकड़े हैं आँकड़े फिर भी नहीं झूठ में सच जोड़िए मिलते सिरे फिर भी नहींहर तरफ लाशें ही लाशें हैं मगर दिखतीं नहीं और दिखती हैं तो छूतीं सैकड़े फिर भी नहींकम अजूबी बात है क्या यह हमारे दौर की

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अपनी औकात से बढ़ने की सजा पाती है

अपनी औकात से बढ़ने की सजा पाती है धूल उड़ती है तो धरती पे ही आ जाती हैअबकी सूरज से मिलेंगे तो यही पूछेंगे छाँव पेड़ों की तेरे साथ कहाँ जाती है

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