जितना जी चाहे लुटाओ इसे दौलत समझो
जितना जी चाहे लुटाओ इसे दौलत समझो मिल गई तुमको मुहब्बत तो ये नेमत समझोअहले-दुनिया जो परखती है परखने दो तुम अपनी मंजिल पे नजर रक्खो सियासत समझोआग में तप के जो चमका है वही सोना है ऐसे वैसों के चमकने की हकीकत समझो
जितना जी चाहे लुटाओ इसे दौलत समझो मिल गई तुमको मुहब्बत तो ये नेमत समझोअहले-दुनिया जो परखती है परखने दो तुम अपनी मंजिल पे नजर रक्खो सियासत समझोआग में तप के जो चमका है वही सोना है ऐसे वैसों के चमकने की हकीकत समझो
खुशरंग नजारों से गुजरने नहीं देता वो मौसमे-वादी को सँवरने नहीं देताहै वक्त के सैलाब में बहना ही मुकद्दर गिर्दाब तो कश्ती को उभरने नहीं देताकुछ जख्म भर जाते हैं कुछ रोज में लेकिन कुछ जख्मों को मैं ही कभी भरने नहीं देता
किरदार इस जहान में आला नहीं मिला मुझको किसी दीये में उजाला नहीं मिला‘जन्नत’ का ख्वाब देखने वाले तो हैं मगर जन्नत का दर्द बाँटने वाला नहीं मिलामेहनतकशों का दर्द वो समझेंगे क्या भला
कोहरा है कि धुँधला-सा सपन ओढ़ रखा है इस भोर ने क्या नंगे बदन ओढ़ रखा हैआ छत पे कि खींचें कोई अपने लिए कोना आ सिर्फ सितारों ने गगन ओढ़ रखा हैकुछ खुल के दिखा क्या है तेरे नीलगगन में कैसा ये धुँधलका मेरे मन ओढ़ रखा है
हर एक मुश्किल में तप के खुद को, वो जैसे कुंदन बना रही है नदी के जैसे बना के रस्ता, मुकाम अपना वो पा रही हैन माँ पिता पर है बोझ अब वो, हुआ उलट है अब इसके बिल्कुल
जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो सामने मेरे खुदा हो, दरमियाँ कोई न होए खुदा अपनी नवाजिश से मुझे कर सरफराज अपनी मंजिल आप पाऊँ, मेहरबाँ कोई न होसाजिशें सब कुछ मिटाने की करे हैं चंद लोग जिंदगी का दूर तक नामोनिशाँ कोई न हो