कब अनुकूल रहा मौसम
कब अनुकूल रहा मौसम दिल टूटा न टूटे हमइस दुनिया की रीत यही धूप जियादा साया कममरहम बाँटने वाले लोग माँग रहे हैं अब मरहमकौन चमन को छोड़ चला फूलों की हैं आँखें नम
कब अनुकूल रहा मौसम दिल टूटा न टूटे हमइस दुनिया की रीत यही धूप जियादा साया कममरहम बाँटने वाले लोग माँग रहे हैं अब मरहमकौन चमन को छोड़ चला फूलों की हैं आँखें नम
अगर मैं अक्स हूँ तेरा, तो आइना है किधर मुझे बता दे जमाना, ये देखता है किधरमुझे तो रंजो-अलम से, कहीं फरार नहीं जिधर भुलाते हैं गम सब, वो मयकदा हे किधर
तूने बख्शा है वो गम रक्खा है आँसुओं से खुद को नम रक्खा हैमेरे मौला मेरी इज्जत रखना राहे-उल्फत में कदम रक्खा हैखंजर, तीरो-कमां छोड़ दिया अपने हिस्से में कलम रक्खा हैहमसे नाराज नहीं हैं बेटे बाप होने का भरम रक्खा है
बादलों पर टहल रही है धूप रंग कितने बदल रही है धूपकारवाँ बादलों का क्या निकला साथ साये के चल रही है धूपशाम ने रुख जरा-सा क्या बदला और सज के निकल रही है धूपआग ऐसी लगी है सहरा में
कामयाबी हाथ ही आती नहीं, ऐसा नहीं जिस तरह हम चाहते हैं उस तरह होता नहींमेहरबाँ हो ये मुकद्दर यूँ कभी सोचा नहीं जानते हैं मुफ्त में कुछ भी कोई देता नहींचाहते हैं आपकी उम्मीद पर उतरें खरे
ऐ चितेरे इक अजन्मे की जगह खाली है पेड़ के चित्र में पत्ते की जगह खाली हैइक सिवा तेरे कोई और इसे क्या भरता दिल में अब भी तेरे हिस्से की जगह खाली हैयूँ तो कितने ही सितारों से सजा है ये फलक मेरे ही नाम के तारे की जगह खाली है