इन्हीं हाथों से

बेटी मात्र बेटी ही नहीं होती माँ-बाप की लाड़ली होती है परिवार की लालिमा होती है समाज का मान-सम्मानऔर देश की धरोहर होती है।

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तस्वीर

जब मैं देखता हूँ अपने पूर्वजों कीटँगी हुई तस्वीरें, तो मन में बातें दृढ़ता दर्द भरी उभर आती है कि मैं भी तो टंग जाऊँगा इनके साथ ही एक दिन

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माँ

माँ, आसमान के सितारेसमेट ले आती है स्नेह के धागों के आँचल में, और साथ-साथ लाती है दुधिया आकाश लोकचंदा के आँगन से

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खुशबू के शिलालेख

आज दिनभर एक नदी बहती रही थी मेरे भीतर। मन फुँकता रहा था आवेग की तरह और भीतर में एक सन्नाटा पसरा हुआ था, रहम की तरह। फिर शाम दर्द से टूटी हुई लकड़ी की तरह आई थी और मेरे करीब बैठ गई थी।

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