गहरी नींद में सो सकूँ

संघर्ष से भरा जाड़े की ठिठुरती रात में वह दो रोटी खा, सो रहेगा खोड़ी ही खाट पर एक गहरी नींद ले लेगी उसे अपने आगोश में

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कोशकार अरविंद कुमार

अरविंद कुमार हिंदी की विभिन्न बोलियों के शब्दों की ऐसी झड़ी लगा देते थे मानो मशीनगन से गोलियाँ छूट रही हों।

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कौन नहीं जानता

कौन नहीं जानता विश्व के कोने-कोने में आबाद आतंकवाद विश्व व्यापार केंद्र और पेंटागन पर हमले के पूर्व जब जिसको जैसे चाहा जी भर कर नोंचा है

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