समकाल
आकांक्षाओं का बंडल कोई भीतर-ही-भीतर नमक से नहा रहा कोई रगों में नाव खेता हुआ समकाल है यह सराय ख़ाली होती जा रही
आकांक्षाओं का बंडल कोई भीतर-ही-भीतर नमक से नहा रहा कोई रगों में नाव खेता हुआ समकाल है यह सराय ख़ाली होती जा रही
उनकी आवाज़ सुनने का मन होता है वह कहीं सुरक्षित नहीं है कि बजा दिया जाए जब मन करे जैसे पुकार लिया करते थे वे कई बार मेरा नाम
सूरदास ब्रजभाषा के प्रमुख भक्त कवि हैं और उन्होंने पहले से चली आ रही ब्रज भाषा को अधिक व्यंजनापूर्ण बनाया और उसे परिष्कृत किया।
कई शहरों में कई-कई लेबर चौराहे हैं अल्लापुर या रामबाग़ में बनारस या कानपुर में दिल्ली या अमृतसर में हर जगह जैसे सिविल लाइन्स है, जैसे घंटाघर है, जैसे चौक है
हर व्यक्ति अपनी जगह से आगे बढ़कर देखता है मल्लाह नदियों के सपने देखते हैं नदियों के स्वप्न में मछलियाँ नहीं समुद्र आता है
हर रात एक अलविदा कहती है हर दिन एक निरंतर परहेज में तब्दील हुआ जाता है क्या यह आख़िरी बार होगा जब मैं तुम्हारे देह में लिपटी स्निग्धता को महसूस कर रहा हूँ