विरल व्यक्तित्व : शिवजी

आचार्य शिवपूजन सहाय, जिन्हें शिवजी के नाम से भी लोग जानते रहे हैं, साहित्य-जगत के यथानाम शिव और सत्य-सुंदर के मध्य में सुशोभित-समवेत, संगम की भाँति ही स्वच्छ-निर्मल–‘सत्य-शिव-सुंदर’ की प्रत्यक्ष परिभाषा थे।

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विलियम फॉकनर

विलियम फॉकनर के उपन्यास साहित्य में भी हेमिंगवे की तरह जीवनी का बड़ा समावेश है। परंतु अंतर केवल इतना है कि फॉकनर के कल्पित पात्रों में लेखक का जीवन-प्रकाश न होकर उसके परिवार की पिछली पीढ़ियों की झाँकी मिलती है।

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कश्मीरी कपड़े का करिश्मा

तब तो कमाल है साब! यह सूट सर्दी में उसको पहनाना और गर्मी में खुद पहनना। जब उसको कुछ बड़ा हो तो थोड़ा पानी का छींटा उस पर मार देना और जब आपको कुछ छोटा हो तो उस पर इस्त्री कर देना।

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आपके रास्ते

जब कभी भी ‘रास्ता’ शब्द सुनता हूँ, तो मुझे गाँव की वे पगडंडियाँ याद आ जाती हैं, जो गाँव की धूल भरी जमीन से निकलकर आम के बगीचों या लहलहाते खेतों में खो जाती हैं। शायद यह मेरे बचपन का संस्कार है, जो अपनी जगह आज भी सुरक्षित है।

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श्री राजेश्वर प्र. नारायण सिंह की कविता

श्री राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह, एम. पी. हिंदी साहित्य के लब्घप्रतिष्ठ कवि और समर्थ गद्यकार हैं। मानव-हृदय को रागात्मक अनुभूति से रससिक्त कर देना आपकी कविताओं की मूल विशेषता है। आपके द्वारा रचित पाँच काव्य-ग्रंथ हैं–

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विश्व-शांति की समस्या के संदर्भ में युद्ध-परक साहित्य

‘विश्व-शांति की समस्या के संदर्भ में युद्ध-परक साहित्य’ विषय तीन शब्द-बिंदुओं से सीमित है। ये बिंदु हैं-शांति, युद्ध और साहित्य। शांति का अर्थ प्रस्तुत संदर्भ में विश्व शब्द से संबद्ध है। उसको अध्यात्म समाज और राज की तीन भिन्न दृष्टियों से समझा जा सकता है, परंतु विषय की सीमा का ध्यान रखते हुए प्रथम तथा द्वितीय दृष्टियों को छोड़ देना आवश्यक है। राजनैतिक स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों या देशों में परस्पर जो संघर्ष होते हैं, उनकी समाप्ति की स्थिति ही प्रस्तुत संदर्भ में शांति की अर्थ-सीमा में स्वीकार की जा सकती है। युद्ध की अर्थ-सीमा भी आक्रमण और उसके विरोध तक विस्तृत न मानकर, केवल विरोध की स्थिति तक मानी जानी चाहिए, क्योंकि आक्रमणकारी के पशु-बल का यदि गतिरोध न किया जाए, तो युद्ध की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। अतः तात्विक दृष्टि से युद्ध आक्रामक भावना का प्रतीक नहीं, अपितु आक्रमण-प्रतिरोध की आकांक्षा की अभिव्यक्ति है। इस दृष्टि से इतिहास के पृष्ठ पर हम जिस घटना को ‘युद्ध’ कहते हैं, वह साहित्य की भाव-भूमि पर शौर्य, शक्ति, तेज और जीवन के ओज का बोध है।

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